सीएम के हाथों मजदूरों को मिलेंगे चेक, तीन दशक बाद लौटेगी खुशी

सीएम के हाथों मजदूरों को मिलेंगे चेक, तीन दशक बाद लौटेगी खुशी

इंदौर। हुकमचंद मिल मजदूरों को मिलने वाली राशि वितरण का श्रीगणेश प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के हाथों होगा। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मजदूरों से वर्चुअली संवाद करेंगे। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस, सुशासन दिवस पर यह कार्यक्रम हो रहा है। तीस वर्ष से लंबित इस प्रकरण में 4800 श्रमिकों को राहत मिलेगी और उनके परिवारों के लगभग 25 हजार सदस्य लाभान्वित होंगे। नंदानगर क्षेत्र स्थित कनकेश्वरी धाम में 25 दिसंबर को प्रात: 11 बजे से कार्यक्रम आरंभ होगा।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इंदौर जिला प्रशासन को निर्देश दिए कि मजदूरों को मिलने वाले हितलाभ की राशि के लिए मजदूरों को परेशान न होना पड़े, कलेक्टर यह सुनिश्चित करें कि राशि सीधे मजदूरों को मिले, इसके लिए आवश्यक हो तो मजदूर संघों से बातचीत की जाए। मजदूरों को मिलने वाली हितलाभ की पूरी राशि मजदूरों तक पहुंचे, कोई भी बीच में न आए, मजदूरों के हित सुनिश्चित करने के लिए तत्काल बैठक बुलाकर आवश्यक कार्यवाही की जाए और राशि वितरण की सुगम व्यवस्था पर निगरानी रखी जाए। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने निर्देश दिए कि जिन अन्य मिलों की देनदारियां रही हैं उन मिलों के प्रकरणों का निराकरण भी हुकमचंद मिल के मॉडल के आधार पर कर मजदूरों को राहत दी जाए। बैठक में बताया गया कि कुल 11 मिलों के प्रकरण न्यायालय में लंबित हैं।

महापौर की भूमिका सराहनीय

श्रीवंश ने बताया कि मजदूरों को पैसा दिलाने का प्रयास कई महापौर, विधायक, सांसद तक कर चुके थे, लेकिन किसी ने भी गंभीरता से रुचि नहीं दिखाई। महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने मजदूर भाइयों की पीड़ा समझते हुए अपने स्तर पर सराहनीय भूमिका निभाई। भार्गव जब महापौर नहीं थे, वे तब भी मजदूरों को पैसा दिलाने में सहायक रहे हैं।

कई मजदूरों का निधन

श्रीवंश ने बताया कि इतनी लंबी लड़ाई के दौरान कई मजदूरों का निधन हो गया तो कुछ मजदूरों ने आजीविका चलाने दूसरे काम शुरू कर दिए। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि पैसा मिलेगा, लेकिन जब कोर्ट ने फैसला सुनाया तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा और वो दिन आज आ गया।

कोर्ट ने मजदूरों की पीड़ा समझी और उनके पक्ष में निर्णय सुनाया

मजदूर यूनियन के अध्यक्ष हरनामसिंह धारीवाल ने बताया कि जब मिल में तालाबंदी हुई थी, तब 5 हजार के आसपास मजदूर थे। 32 साल की कानूनी लड़ाई लड़ने के दौरान कांग्रेस, भाजपा की कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन अपने परिश्रम का पैसा लेने मजदूरों को जज्बे में कोई कमी नजर नहीं आई। आंदोलन, ज्ञापन देने के बाद भी जब सरकार निस्तेज पड़ी रही तो मजदूर यूनियन ने कोर्ट के दरवाजा खटखटाया। कोर्ट में सरकार ने अपनी ओर से कई दलीलें दीं। सरकार की मंशा जाहिर होने लगी कि शायद पैसा नहीं दिया जाए। कोर्ट ने मजदूरों की पीड़ा समझी और उनके पक्ष में निर्णय सुना दिया।