30 सालों से भाजपा का गढ़ बनी केंट विस लगातार पराजित हुए कांग्रेस प्रत्याशी

30 सालों से भाजपा का गढ़ बनी केंट विस लगातार पराजित हुए कांग्रेस प्रत्याशी

जबलपुर। वर्ष 1993 से लेकर अब तक केंट विधानसभा भाजपा का गढ़ बनी हुई है जिसमें अब तक कांग्रेस सेंध नहीं लगा पाई है,उलटे यहां कांग्रेस प्रत्याशियों ने पूरे जिले में सबसे ज्यादा वोटों से हारने का रिकॉर्ड भी बनाया है। इस बार कांग्रेस का आलाकमान बेहद सतर्क है और फूंकफूंक कर कदम रख रहा है। यह बात भी चर्चाओं में है कि यहां से महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू को पार्टी चुनाव में उतार सकती है। यहां यह स्पष्ट करना उचित होगा कि महापौर के चुनाव लड़ने की खबर 2-3 माह पूर्व भी सामने आई थी जिसमें क्षेत्रीय विरोध को देखते हुए महापौर ने स्पष्ट किया था कि वे केंट से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। अब यदि पार्टी प्रेशर करती है तो श्री अन्नू का क्या स्टैंड होगा ये बात भी एक दो दिन में क्लीयर हो जाएगी। केंट विस से वर्ष 1993,1998,2003,2008 में ईश्वरदास रोहाणी चुनाव जीते।

इसके उपरांत उनके देहावसान के बाद 2013 में उनके पुत्र अशोक रोहाणी ने चुनाव लड़ा और जीत में पूरे जिले में रिकॉर्ड बनाया। इस जीत को उन्होंने 2018 के चुनाव में भी दोहराया और अब वे अपनी तीसरी पारी में उतर रहे हैं। यहां से कांग्रेस की ओर से बाबू चंद्रमोहन कांग्रेस के अंतिम विधायक थे जिन्होंने 1993 में ईश्वर दास रोहाणी से पराजय पाई थी। इसके बाद दो बार आलोक मिश्रा,तविंदर कौर गुजराल,चमन श्रीवास्तव आदि ने चुनाव लड़ा और हारे। वर्तमान में सर्वाधिक मजबूती से दावा पेश कर रहे हैं यहां से दो बार केंट बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे अभिषेक चौकसे। अब वे भाजपा पर कितने भारी पड़ सकते हैं इस पर कांग्रेस विचार कर रही है।

ऐसी रही पिछले चुनाव में स्थिति

2018 के चुनाव में अशोक रोहाणी को 71 हजार 898 मत मिले थे। कांग्रेस प्रत्याशी आलोक मिश्रा को 45 हजार 313 मत मिले थे। तीसरे नंबर पर निर्दलीय राजेश कुमार सिंह रहे जिन्हें 3392 मत मिले थे। चौथे नंबर पर नोटा रहा जिसमें 2256 लोगों ने इस बटन को दबाया था। बाकी सभी हजार के अंदर रहे। कुल 15 प्रत्याशियों ने विगत चुनाव में अपना भाग्य आजमाया था।यहां कुल 1 लाख 88 हजार 016 मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया था।

यदि महापौर उतरे तो चौंकाने वाले हो सकते हैं परिणाम

जैसा कि कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि जबलपुर और रीवा में महापौरों पर कांग्रेस दांव लगा सकती है। ऐसा हुआ तो जबलपुर में महापौर के उतरने से परिणाम चौंकाने वाले हो सकते हैं। उनके साल भर का कार्यकाल पूरे शहर में अच्छा माना जा रहा है। कुछ महीनों से उनकी केंट में सक्रियता भी देखने मिली थी।