बीएलएस देने जरूरी नहीं आप डॉक्टर हों एक प्रयास बचा सकता है किसी की जान

बीएलएस देने जरूरी नहीं आप डॉक्टर हों एक प्रयास बचा सकता है किसी की जान

ग्वालियर। यह बात सच है कि डॉक्टर्स को भगवान का दर्जा दिया गया है, मरीज की जान बचाने में डॉक्टर कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, लेकिन कई बार प्रारंभिक उपचार नहीं मिलने के कारण मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देता है। कुछ केस जैसे की हार्ट अटैक, एक्सीडेंट जैसे मामलों में अगर मरीज को बेसिक लाइफ सपोर्ट (बीएलएस) मिल जाए तो उसकी जान बचाई जा सकती है, इसके लिए जरूरी नहीं है कि आप डॉक्टर हों।

यह बात एसपी ऑफिस में आयोजित ट्रेनिंग प्रोग्राम में जेएएच समूह के अधीक्षक डॉक्टर आरकेएस धाकड़ ने कही। कोई भी कैजुअल्टी होती है तो उसमें सबसे पहले पुलिसकर्मी पीड़ित के पास पहुंचता है, इसलिए हमने इन स्थानों को प्रशिक्षण के लिए चुना है। कुछ महीनों पहले शहर में एक मामला सामने आया था, जिसमें एक महिला पुलिसकर्मी द्वारा बीच सड़क पर एक व्यक्ति को बीएलएस देने से उसकी जान बच गई थी। इस अवसर पर एसपी राजेश सिंह चंदेल सहित काफी संख्या में पुलिस कर्मी मौजूद रहे और उन्होंने ट्रेनिंग भी ली।

शहरवासियों को इसी बेसिक लाइफ सपोर्ट की जानकारी एवं ट्रेनिंग देने के लिए इंडियन आर्थोपेडिक एसोसिएशन की ग्वालियर शाखा द्वारा शुक्रवार को शहर के चार स्थानों पर बेसिक लाइफ सपोर्ट (बीएलएस) ट्रेनिंग प्रोग्राम कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें डॉक्टर्स व ट्रेनर पुलिसकर्मी व उनके परिजनों को प्रशिक्षण दिया गया कि बीएलएस कैसे देना है या फिर मरीज की जान किस प्रकार बचाई जाती है। ऐसे केस में आपको क्या-क्या सावधानी बरतनी हैं आदि के बारे में जानकारी प्रदान की।

स्थान: एसपी ऑफिस

डॉक्टर्स की टीम: डॉ. आरकेएस धाकड़ अधीक्षक जेएएच समूह, डॉ. नीलिमा टंडर ट्रेनर, डॉ. आरएस बाजौरिया सचिव आईओए, डॉ. सुरेन्द्र यादव।

स्थान: पीटीएस तिघरा

डॉक्टर्स की टीम: डॉ. पुखराज गौड़, डॉ. नीलिमा टंडर ट्रेनर, डॉ. देवेश बांदिल।

स्थान: पुलिस लाइन

डॉक्टर्स की टीम: डॉ. जितेन्द्र अग्रवाल ट्रेनर, डॉ. सचिन जैन, डॉ. उत्कृष पाल।

स्थान: एलएनआईपीई

डॉक्टर्स की टीम: डॉ. सुनील अग्रवाल, डॉ. मनीष बैरागी, डॉ. पीवी आर्या ।

एक घंटे चला सेंशन, दो हजार ने ली ट्रेनिंग

इंडियन आर्थोपेडिक एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने यह ट्रेनिंग प्रोग्राम एक साथ चार स्थानों पर आयोजित किया। इस बार की थीम इच वन ट्रेन वन सेफ वन थी जिसमें दो हजार लोगों को बेसिक लाइफ सपोर्ट की जानकारी प्रदान की। अगर यह लोग इस ट्रेनिंग को कभी प्रयोग कर किसी को सीपीआर सहित अन्य उपचार प्रारंभिक तौर पर देते हैं तो पीड़ित की जान बच जाएगा।