कला में कॅरियर बनाना मुश्किल, क्योंकि इसमें सक्सेस कब मिलेगी पता नहीं
शास्त्रीय कला में कॅरियर बनाना मुश्किल है, क्योंकि इसमें समय बहुत लगता है। कोई यह नहीं कह सकता है कि 10 साल बाद आप सक्सेस ही हो जाओगे। यह एक ऐसी फील्ड है, जहां अनिश्चितता ज्यादा है। लेकिन अब समय में बहुत बदलाव आया है। कला को बढ़ावा देने के लिए पाठ्यक्रम बहुत अच्छा है, लेकिन टीचर्स की कमी है। यही कारण है कि हम पिछड़ रहे हैं। यह कहना है, भरतनाट्यम नृत्यांगना पद्मश्री गीता चंद्रन का, जो कि शनिवार को भारत भवन में आयोजित भरतनाट्यम नृत्य कार्यशाला में मौजूद थी। इस अवसर पर संस्कृति संचालक अदिति त्रिपाठी एवं भारत भवन के प्रशासनिक अधिकारी प्रेम शंकर शुक्ला उपस्थित रहें। यह कार्यशाला पांच दिनों तक चलेगी, जिसमें लगभग 40 प्रतिभागियों को भरतनाट्यम से जुड़ी बारीकियों से अवगत कराया जाएगा।
पहले के दर्शकों को कला की अच्छी समझ थी
गीता कहती हैं कि पहले के समय दर्शक और श्रोताओं में कला के प्रति समझ अच्छी थी, कला की बारीकियों के बारे में पता था। लेकिन आज के समय में आॅडियंस ऐसी हो गई है, जो कि कला से जुड़े ही नहीं हैं। ऐसे में भरतनाट्यम में भी पहले से बहुत बदलाव आया है, जहां पहले 3 घंटे तक प्रोग्राम किया जाता था, जो आज के समय में एक घंटे की रह गई है। जहां एक वर्णम पहले 40 मिनट का होता था उसे अब हमें 20 मिनट में समेटना पड़ता है।
भरतनाट्यम फूलों का गुलदस्ता, जो कि मंदिरों से निकला आर्ट फॉर्म है
गीता चंद्रन कहती हैं कि वर्तमान समय की जनरेशन को सिखाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि इन्हें पढ़ने की आदत ही नहीं है। आज के समय इंस्टाग्राम के पोस्ट पढ़ने से इमेजिनेशन डेवलप नहीं होती है। अब बच्चों में आर्ट के प्रति श्रद्धा नहीं है, इसका एक कारण यह भी है कि अब घर में पहले जैसा माहौल नहीं रहा है। क्योंकि भरतनाट्यम फूलों को गुलदस्ता है, जो कि मंदिरों से निकला आर्ट फॉर्म है, जिसे करने से पहले इसे समझाना बहुत जरूरी है। वहीं जो भी बच्चे मुझसे ट्रेनिंग लेने आते हैं तो मैं उन्हें पहले गीता, रामायण पढ़ने को देती हूं। उन्होंने कहा कि यंग जनरेशन में जुनून बहुत है, वह जो चीज ठान लेते हैं उसे करते ही हैं। उन्होंने कहा कि मैं 5 साल की उम्र से डांस कर रही हूं और 7 साल की उम्र में संगीत सीखना शुरू कर दिया था।