इजराइली कंपनियों से कराई जा रही नागरिकों की जासूसी
कॉग्नाइट को पेगासस का माना जा रहा विकल्प, इसी से हो रही निगरानी
नई दिल्ली। इंडियाज कम्युनिकेशंस बैकडोर अट्रैक्ट्स सर्विलांस कंपनीज (India's communications backdoor attracts surveillance companies) शीर्षक वाली रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत की संचार निगरानी प्रणालियां निगरानी कंपनियों के लिए बैकडोर बना रही हैं, ताकि सरकार को 1.4 अरब नागरिकों की निगरानी करने में सक्षम बनाया जा सके। दूरसंचार कंपनियों को इन उपकरणों को लगाना अनिवार्य है। यह भारत की सुरक्षा एजेंसियों को नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा व संचार तक पहुंच प्रदान करता है। ये एआई और डेटा एनालिटिक्स की मदद लेकर जरूरत पड़ने पर देश की सुरक्षा एजेंसियों को डेटा ढूंढकर, कॉपी करके दे सकता है।
कॉग्नाइट और सेप्टियर डाटा केंद्रों पर लगाए गए
कॉग्नाइट एक स्पाइवेयर उपकरण है, जिसे पेगासस का विकल्प माना जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक कॉग्नाइट और सेप्टियर जैसी कंपनियों से खरीदे गए निगरानी उपकरण समुद्र के नीचे केबल लैंडिंग स्टेशनों और डेटा केंद्रों पर लगाए गए हैं।
दो साल पहले मेटा ने भी लगाया था जासूसी का आरोप
इससे पहले साल 2021 में मेटा ने आरोप लगाया था कि कॉग्नाइट उन कई कंपनियों में से एक थी, जिनकी सेवाओं का इस्तेमाल अमेरिका, चीन, इजराइल, सऊदी अरब आदि देशों में लगभग 50,000 पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनेताओं को ट्रैक करने के लिए किया जा रहा था, हालांकि इसमें भारत का कहीं जिक्र नहीं था। मेटा के आरोप के बाद काफी विवाद हुआ था।
विपक्षी नेताओं की जासूसी पर उठे थे सवाल
सेप्टियर उन दर्जनों कंपनियों में से एक थी, जिन्हें अटलांटिक काउंसिल ने 2021 में संभावित रूप से गैर-जिम्मेदार प्रसारक माना था। अमेरिका स्थित थिंक टैंक ने अनुमान लगाया था कि ये कंपनियां जोखिम को स्वीकार करने या अनदेखा करने को तैयार हैं। इससे पहले 2021 में भारतीय विपक्षी दल के नेताओं, पत्रकारों ने पेगासस स्पाइवेयर के इस्तेमाल को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा था।
दूरसंचार कंपनियों को बेची गई इंटरसेप्शन तकनीक
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इजरायल स्थित कंपनी सेप्टियर ने मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो, वोडाफोन आइडिया और सिंगापुर की सिंगटेल सहित अन्य दूरसंचार समूहों को अपनी वैध इंटरसेप्शन तकनीक बेची है। सेप्टियर के प्रचार वीडियो के अनुसार, इसकी तकनीक टारगेट की आवाज, संदेश सेवा, वेब सर्फिंग और ईमेल पत्राचार की जानकारी निकाल सकती है।
भारत ही नहीं, ब्रिटेन-अमेरिका में भी होती है जासूसी
जासूसी से जुड़ा मामला सिर्फ भारत में ही नहीं उठा है। युगांडा और रवांडा जैसे देशों में तो इसके लिए कानून बना हुआ है। वहीं 2013 में स्नोडेन लीक से पता चला कि अमेरिका और ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियां दूरसंचार कंपनियों के साथ पिछले दरवाजे की व्यवस्था के माध्यम से बड़े पैमाने पर निगरानी में लगी हुई थीं।