पैसे की बर्बादी करने के बजाए पहले प्रॉब्लम दूर करो, नहीं तो स्मार्ट सिटी का मैकअप धुल जाएगा
ग्वालियर। हाईकोर्ट ने बुधवार को स्वर्ण रेखा नदी सौंदर्यीकरण और निष्पादन से जुड़ी जनहित याचिका की सुनवाई की। स्मार्ट सिटी की सीईओ रिंकू माथुर ने बताया कि स्मार्ट सिटी मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय स्तर का बस स्टैंड और बाड़े पर कार पार्किंग बना रहे हैं। पुराने भवनों का रिनोवेशन कराया जा रहा है। न्यायालय ने कहा कि ईमानदारी से बताना कि दो घंटे बारिश हो गई तो बाड़े की क्या स्थिति होगी। इस पर सीईओ कोई जवाब नहीं दे सकीं। न्यायालय ने कहा पैसा बर्बाद करने से अच्छा है कि पहले समस्याओं को दूर किया जाए, नहीं तो स्मार्ट सिटी का मैकअप धुल जाएगा। रोड के किनारे जो लैंप लगाए हैं, उन्हें देखो लैंप से बल्ब बाहर निकल रहे हैं, तो कहीं लैंप तिरछा है। हेरिटेज सिटी बनाने की बात की जा रही है, मगर कई जगहों पर ट्यूब लाइट तक नहीं हैं।
कितनी जगहों पर जाली लगना है, कोई सर्वे किया है
न्यायालय ने स्मार्ट सिटी सीईओ पूछा कि नदी में लोग गंदगी नहीं फेंकें, इसके लिए कहां-कहां जाली लगाना हैं, इसे लेकर कोई सर्वे किया है क्या। प्रोजेक्ट कितने का है, सरकार से पैसा किस मद में आ रहा है, पैसा कहां- कहां खर्च हो रहा है और प्रोजेक्ट कब तक पूरा होगा। कोर्ट ने सारी जानकारी देने के लिए हलफनामा पेश करने के आदेश दिए हैं। निगमायुक्त हर्ष सिंह ने बताया कि नदी में सीवर की गंदगी नहीं गिरे, इसके लिए 26 किमी की लाइनें बिछा ली गई हैं। 12 करोड़ के काम हो चुके हैं, 48 करोड़ के होना हैं, जिसके लिए टेंडर निकाले जा रहे हैं। कोर्ट ने पूछा कि कितना काम कर लिया है और बाकी काम कब तक हो जाएगा, इसका ब्लू पिंटू कहां है। निगमायुक्त ने कहा काम अलग-अलग फेज में पूरा होगा। इस पर न्यायालय ने हलफनामा पेश करने को कहा। साथ ही न्यायालय ने कहा कि बहुत खूब.... इससे अच्छा और क्या काम होगा? कोई काम न करना हो तो समिति बना दो।
मिस्टर कमिश्नर, तीन साल में ये समझ नहीं पाए कि 52 जिलों में 15 फूड टेसि्ंटग वैन क्या कर लेंगी ?
हाईकोर्ट की युगलपीठ ने बुधवार को मिलावटी दूध, मावा को लेकर एडवोकेट उमेश बोहरे द्वारा दायर अवमानना याचिका की सुनवाई की। न्यायालय ने कहा कि भिंड, मुरैना में तैयार मिलावटी दूध, मावा, घी पूरे देश में सप्लाई हो रहा है, लेकिन ऐसा करने वालों पर कार्रवाई नहीं हो रही है। कोर्ट ने फूड कमिश्नर डॉ. सुदाम खड़े से पूछा कि मिलावटी खाद्य पदार्थों की जांच के लिए कितनी मोबाइल वैन हैं। कमिश्नर ने कहा कि 15 वैन हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि 52 जिले हैं और सिर्फ 15 वैन। तीन साल में आप यह नहीं समझ पाए कि 15 मोबाइल वैन क्या कर लेंगी। कमिश्नर ने बताया कि 40 मोबाइल वैन, 55 दूध की जांच करने वाली मशीन और कर्मचारियों की डिमांड की है। न्यायालय ने 12 मार्च तक पालन प्रतिवेदन रिपोर्ट मांगी है।
कागजों में नहीं, ग्राउंड लेवल पर कार्रवाई होना चाहिए
न्यायालय ने फूड कमिश्नर से कहा कि पब्लिक हेल्थ का मामला है और आप पब्लिक सर्वेंट हो। आप को हमारे लिए नहीं बल्कि पब्लिक के लिए काम करना है। मिलावट करने वालों के खिलाफ जो कार्रवाई हो रही है, वह ग्राउंड लेवल पर दिखना चाहिए। आप मिलावट का चैलेंज फेस नहीं कर पा रहे हैं। पब्लिक हेल्थ का मजाक बना रखा है। इस मामले में वर्ष 2009 में डिसीजन दिया जा चुका है मगर 15 साल से स्थिति जस की तस है। कोर्ट ने पूछा तीन साल में कितने सैंपल भेजे, कितनों की रिपोर्ट आई और मालिकों पर क्या कार्रवाई हुई। कमिश्नर के गोलमोल जवाब देने पर कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि मिलावट से मुक्ति अभियान शराफत से चल रहा होता तो हम सब मुक्तिधाम चले जाते। अभी तक मामले में जितने अधिकारी आए, उन्हें यह नहीं पता था कि फूड सैंपल कहां भेजना है। न्यायालय ने मुख्य सचिव की रिपोर्ट पर नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि ऐसे आदेश जारी करें, जिनका पालन हो सके।