भारत को अखण्ड और समर्थ बनाना है : राम भद्राचार्य
जबलपुर। धर्मचक्रवर्ती तुलसीपीठाधीश्वर जगतगुरु पदम विभूषण स्वामी रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य जी महाराज गुरुवार रात करीब 8.15 बजे संस्कारधानी जबलपुर आगमन हुआ। यहां पर डुमना एयरपोर्ट से वे सीधे गोलबाजार शहीद स्मारक में समरसता सेवा संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में श्रीराम का समरस एवं समर्थ भारत विषय व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा भारतस्य: देशम: भरत के देश को भारत कहते है तीन भरतों का यह निवास स्थान रहा है। भारत को अखण्ड और समर्थ बनाना है। तिरंगा झंडे का बीज भी यही है। केशरिया, श्वेत और हरा। केशरिया रंग लिया जयंती ऋषभ के भरत, श्वेत रंग लिया शंकुतला पुत्र भरत से और हरा रंग कैकेय पुत्र भरत से। एक का अवदान, एक बलिदान और एक का वरदान इन तीनों की समस्त ही भारत है। आलोचना करना सब जानते है कोई पढ़ता लिखता नहीं है। चलना है तो एक साथ मिलकर चलो..बोलना है एक ही स्वर में मिलकर सब बोलो। एक साथ सब मन से संकल्प करें। इसी तरह 140 करोड़ जनता यदि एक स्वर पर कोई बात बोले तो कोई सरकार जनता की मांग नहीं ठुकरा सकती। श्रीराम राज्य में कोई भी वीआईपी नहीं था वहां प्रत्येक भारतीय वीआईपी था। वीआईपी परम्परा जब तक रहेगी भारत समर्थ नहीं बन सकता। मंच पर आसीन सभी संतों का समरसता सेवा संगठन के अध्यक्ष संदीप जैन, स्वागत समिति का संयोजक डॉ जितेंद्र जामदार, सह संयोजक अखिल मिश्रा, डॉ अभिजातकृष्ण त्रिपाठी, पं आशुतोष दीक्षित, संजय गोस्वामी, उज्ज्वल पचौरी ने आशीर्वाद लिया।
तीन शब्दों से मिलकर बना है भारत शब्द
उन्होंने कहा भारत शब्द तीन शब्दों को मिलकर भा आ और रत। यहां पर भा का अर्थ है भगवान। आ का अर्थ है आदर और रत का अर्थ है प्रेम है जिस देश में भगवान का आदर भी हो और प्रेम भी उस देश का नाम भारत है।
ये संत भी रहे मंचासीन
श्रीमद् जगद्गुरु सुखानंद द्वाराचार्य स्वामी राघव देवाचार्य, दण्डीस्वामी कालिकानंद सरस्वती, महामंडलेश्वर अखिलेश्वरानंद, स्वामी गिरिशानंद सरस्वती, स्वामी पगलानंद, नृसिंहपीठाधीश्वर डॉ नरसिंह दास, स्वामी डॉ मुकुंददास, साध्वी विभानंद गिरी, साध्वी ज्ञानेश्वरी, स्वामी रामदास, स्वामी चैतन्यानंद, डॉ राधे चैतन्य, साध्वी सम्पूर्णा, साध्वी शिरोमणि, स्वामी राम भारती, सन्त केवलपुरी, स्वामी कालीनन्द, स्वामी रामशरण, श्री राम कृष्ण दास, स्वामी त्रिलोक दास, नागा साधु श्यामदास, स्वामी रामाचार्य, स्वामी राजेश दास, स्वामी मृत्युंजय दास मौनी बाबा, साध्वी लक्ष्मीनन्द सरस्वती, महन्त प्रकाशानंद आदि मंचासीन रहे।