1990 में ऐसा लगा जैसे हम राष्ट्रद्रोही-आतंकवादी हैं अपने आराध्य की जन्मभूमि लेने गोली खानी पड़ी

1990 में ऐसा लगा जैसे हम राष्ट्रद्रोही-आतंकवादी हैं अपने आराध्य की जन्मभूमि लेने गोली खानी पड़ी

ग्वालियर। विहिप की अगुवाई में 1984 से शुरू हुए जन आंदोलन ने समूचे भारत के हिंदूओं में संगठित होने की शक्ति जगाई। जिसके बाद वर्ष 1990 की कारसेवा में ऐसा लगा जैसे हम राष्ट्रद्रोही-आतंकवादी हैं। अपने देश में ही अपने आराध्य की जन्मभूमि लेने के लिए गोली खानी पड़ी। वहीं ढांचा टूटने पर 1993 के बाद सीबीआई के छापे डालकर अपमानित किया गया, 90 दिन भूमिगत रहा। यह बात बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक व अयोध्या आंदोलन में मुख्य भूमिका में शामिल रहे पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने पीपुल्स समाचार से विशेष बातचीत में कही।

22 जनवरी को अयोध्या में आयोजित प्राण प्रतिष्ठा समारोह में बुलावे पर ग्वालियर की ओर से प्रतिनिधित्व करने जा रहे पूर्व मंत्री ने बताया कि यह मेरा सौभाग्य है कि रामलला की कृपा से निमंत्रण आया है और 19 जनवरी को उस समय के कारसेवकों का सम्मान करके अवध धाम प्रस्थान करूंगा। हमारा सपना साकार होने के पीछे अनगिनत रामभक्तों का संघर्ष व बलिदान है, उनका ऋण चुका पाना कठिन है।

जब उनसे आस्था के रूप में राममय भारत में हिंदूओं के साथ मुस्लिमों के समर्थन मिलने पर पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि इस समय पूरा भारत उल्लास में डूबा है, राम भारत की आत्मा हैं और जो राम लहर चल रही है, उसमें जाति-पार्टियों के तटबंध टूट रहे हैं और बच्चा- बच्चा राम का जन्मभूमि के काम का नारा धरती पर उतर रहा है। यह काम 1950 में सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार के साथ पूरा होना चाहिए था, लेकिन नेहरू-गांधी परिवारों की नीतियों और मुस्लिम तुष्टीकरण के स्वार्थ में विदेशी आक्रांताओं की विजयी निशानी बनाकर बाबरी ढांचे को जिंदा रखा गया था।

राममंदिर बनने का मतलब किसी भी धर्म-संप्रदाय के पूजा-पाठ में बाधा होना नहीं

विश्व व्यापी मंच पर रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि केन्द्र व उत्तरप्रदेश में रामभक्त न होते, तो सेक्युलरवादी न्याय मिलने में रोड़ा बने रहते। लेकिन राममंदिर बनने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि किसी धर्म-संप्रदाय की पूजा पाठ में बाधा खड़ी होगी। सिंही तो यह है कि देश का समझदार मुसलमान राममंदिर निर्माण का स्वागत कर रहे हैं। क्योंकि वे मानते है कि हर हिंदूस्तानी की रगों में राम का रक्त बहता है।

राज सत्ता है धर्म सत्ता के आगे नतमस्तक

देश में आस्था के सैलाब पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के युग में हम अपनी संस्कृति-विरासत को लेकर सीना चौड़ा कर खड़े हैं। तस्वीर बदल गई है, एक युग था जब अयोध्या जाने में शर्माते थे 2020 शिलान्यास के समय प्रधानमंत्री द्वारा रामलला जू के सामने धरती पर लेटकर साष्टांग प्रणाम करते हैं और राज सत्ता-धर्म सत्ता के सामने नतमस्तक हैं।

वोट की खातिर नहीं गए थे जान हथेली पर लेकर

राममंदिर मुद्दे पर उन्होंने कहा कि इसें चुनाव से जोड़कर देखना व सोचना ही बौनापन होगा। हम जैसे लाखों लोग अपना घर-द्वार छोड़कर जान हथेली पर लेकर क्या वोटों की खातिर मरने गए थे। हम राष्ट्रवाद-हिंदू स्वाभिमान की ज्योति जलाने गए थे और जो राष्ट्रवाद-हिंदू आस्था को कुचलने की बात सोचेगा, वह स्वंय ही पतन का शिकार होगा।

निमंत्रण ठुकराने वालों को नहीं क्षमा करेंगे लोग

कांग्रेस नेताओं द्वारा प्राण प्रतिष्ठा समारोह के निमंत्रण ठुकराने के मामले में कहा कि रामलला जू का निमंत्रण ठुकराना इस देश के लोग क्षमा नहीं कर पाएंगे, ये वहीं लोग है जिन्होंने समस्तीपुर में रामरथ यात्रा के पहिये रोके, अयोध्या में निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलवाई, हलफनामें देकर राम के अस्तित्व को नकार दिया। वे प्राश्यचित करने अयोध्या नहीं जाना चाहते हैं, तो दोष किसका है। ऐसे लोगों को घरेलू बगावत झेलनी पड़ेगी, इस वातावरण में ऐसी कसैली बाते नहीं होनी चाहिए थी।