संस्कृति बचाना है तो संस्कृत पढ़ना होगा : शेजवलकर
ग्वालियर। भवभूति संस्कृत के महान कवि और नाटककार के साथ ही प्रचंड विद्वान थे, उनके नाटकों को महाकवि कालिदास के नाटकों के समकक्ष माना जाता है। संस्कृत एक ऐसी भाषा है जो सुनने में मीठी लगती है। हमारी संस्कृति बहुत पुरानी है, इसकी विधाओं से परिचित होना है तो संस्कृत पढ़ना होगा। यह बात मंगलवार को जीवाजी विवि के गालव सभागार में चल रहे पांच दिवसीय अखिल भारतीय महाकवि भवभूति समारोह के चतुर्थ दिवस पर सांसद विवेक नारायण शेजवलकर ने बतौर मुख्य अतिथि कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जेयू के कुलाधिसचिव प्रो. डीएन गोस्वामी ने कहा कि जितने भी हमारे ग्रंथ हैं उनके अनुवाद को हम पढ़ते हैं। यदि हमें संस्कृत का ज्ञान होगा तो हम उसको मूल रूप में पढ़ सकते हैं, इसके लिए संस्कृत अनिवार्य है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित विवि के कुलसचिव अरूण सिंह चौहान ने कहा कि जो पौधे लगाए गए थे वो अब वृक्ष का रूप ले रहे हैं, छोटा-छोटा प्रयास ही व्यक्ति को एक बड़े लक्ष्य प्राप्ति की ओर ले जाता है। इस मौके पर प्रो. एसके द्विवेदी, डॉ. अशोक आनंद, डॉ. नीतेश शर्मा, डॉ. कृष्णा जैन, डॉ. श्याम सुंदर पाराशर, गिर्राज गुप्ता, डॉ. राजू राठौर, प्रेमशंकर अवस्थी, डॉ. राखी वशिष्ठ, डॉ. विकास शुक्ला, टोटन मोईती, शकील कुरैशी, संजय जादौन सहित छात्र एवं छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विकास शुक्ला एवं आभार प्रो. जेएन गौतम ने व्यक्त किया।
भवभूति ने रामकथा को पूरा किया
सारस्वत अतिथि प्रो. विजय कुमार सीजी ने कहा कि कालिदास ने जो रामकथा छोड़ी उसे भवभूति ने पूरा किया। डॉ. डीएस चंदेल ने कहा कि भवभूति द्वारा लिखे नाटक अपने रहस्य और सजीवता के चित्रण के लिए जाने जाते हैं। विद्वानों का मानना है कि भवभूति के लिए कालिदास के नाटकों के समकक्ष है। महाकवि भवभूति शोध एवं शिक्षा समिति के अध्यक्ष डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने शोध संगोष्ठी के बारे में बताया। कालिदास संस्कृत अकादमी उज्जैन के निदेशक डॉ. गोविन्द गंधे के स्वागत भाषण के साथ कार्यक्रम की शुरूआत हुई। कार्यक्रम में अतिथियों को शॉल श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के दौरान अतिथियों द्वारा चिंतन संचय नामक पुस्तक का विमोचन किया गया। डॉ. चंदेल को सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में 20 से अधिक शोध- पत्रों का वाचन किया गया।