प्रत्याशी पसंद नहीं तो लोग दबाते हैं नोटा का बटन,सांसत में नेता

प्रत्याशी पसंद नहीं तो लोग दबाते हैं नोटा का बटन,सांसत में नेता

जबलपुर। चुनाव आयोग ने मतदाताओं को सालों पहले एक प्रावधान दिया था जिसके तहत यदि उन्हें राजनीतिक पार्टियां या निर्दलीय प्रत्याशी पसंद न हो तो वे नन ऑफ एबव यानि नोटा का बटन दबा सकते हैं। इसे कई मतदाताओं ने स्वीकार किया और ऐसी स्थिति में जबकि वे अपने चुनाव क्षेत्र में पसंदीदा या मनमाफिक प्रत्याशी नहीं पाते तो मतदान में नोटा का बटन दबा देते हैं। कई सीटों पर तो ये निर्णायक भूमिका भी अदा कर चुका है और अच्छी खासी मिली जीत प्रमुख पार्टियों की हार में बदल जाती है। इसके तहत शहर की उत्तर- मध्य विधानसभा को ही ले लें। विगत विधानसभा चुनाव जो कि 2018 में हुए थे में इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी को महज 578 मत से जीत मिली थी जबकि इस सीट पर नोटा मतों की संख्या ही 1209 रही। इसी तरह सिहोरा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी कांग्रेस के प्रत्याशी से 6 हजार 823 मतों से जीतीं जबकि यहां पर नोटा में जिले में सर्वाधिक 4 हजार 620 मत पड़े थे।

हरसंभव कोशिश होती है प्रत्याशी की रिझाने की

यहां गौरतलब है कि चाहे किसी भी दल का प्रत्याशी हो अपने क्षेत्र के मतदाताओं को रिझाने की हर कोशिश करता है। वह ऐसे असंभव वादे तक करने से पीछे नहीं हटता जो कि पूरे नहीं हो सकें। छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी घोषणाएं करने से वह पीछे नहीं हटता मगर इसके बावजूद मतदाताओं का एक वर्ग ऐसा होता है जो इन पर भरोसा नहीं करते हुए अंतत: नोटा बटन का उपयोग कर देता है। वहीं कई दलीय प्रतिबद्धताओं वाले मतदाता भी अपने मनपसंद प्रत्यााशी को प्रत्याशी न बनाए जाने पर रुष्ट होकर नोटा या निर्दलीय को मत दे देते हैं।