आरोपी चार्जशीट की भाषा नहीं समझता तो वह अवैध नहीं: SC

कोर्ट ने कहा - दी जा सकती है अनुवादित कॉपी

आरोपी चार्जशीट की भाषा नहीं समझता तो वह अवैध नहीं: SC

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसमें बताया गया हो कि जांच एजेंसी अदालत की भाषा में ही आरोपपत्र दाखिल करेगी। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने सीबीआई की याचिका पर कहा कि सीआरपीसी की धारा 272 के तहत राज्य सरकार, हाईकोर्ट और अन्य निचली अदालतों की भाषा तय कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत की भाषा में या जिस भाषा को अभियुक्त नहीं समझता, उन्हें छोड़कर किसी अन्य भाषा में दाखिल आरोपपत्र अवैध नहीं है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि ध्यान रखना होगा कि दाखिल किए गए आरोपपत्र से न्याय की विफलता नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि आरोपी उपलब्ध कराई गई चार्जशीट और अन्य दस्तावेज की भाषा नहीं समझता है तो उसे अदालत के सामने आपत्ति दर्ज करानी चाहिए तो उसे अनुवादित दस्तावेज उपलब्ध कराए जा सकते हैं।

सहमति की उम्र में कटौती को दी कोर्ट में चुनौती

सुप्रीम कोर्ट यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र घटाने के खिलाफ एक एनजीओ की याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया है। याचिका में कहा गया है कि सहमति की उम्र घटाया जाना बड़ी संख्या में यौन शोषण के शिकार बच्चों, खासकर लड़कियों के हितों को खतरे में डालता है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और दो अन्य जजों की बेंच ने केंद्र को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा दायर लंबित याचिका के साथ संबद्ध कर दिया। आयोग ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के नाबालिग मुस्लिम लड़की को पसंद के व्यक्ति से शादी करने की इजाजत देने के फैसले को चुनौती दी है।