किसी को भी लूला-लंगड़ा, काना कहा तो हो सकती 5 साल की जेल
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव होने में कुछ महीनों का समय बचा है। सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव के लिए रणनीति तैयार करने में जुटी हुई हैं। इस बीच चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों के लिए कुछ महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए हैं। हाल के दिनों में राजनीतिक चर्चा में विकलांग लोगों के बारे में अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया। इसे देखते हुए आयोग ने कहा कि किसी भी राजनीतिक दल के सदस्यों या उनके उम्मीदवारों द्वारा इस तरह की बात की जाती है तो इसे दिव्यांगजनों का अपमान समझा जाएगा। आयोग ने बताया है कि किस तरह के शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इसमें गूंगा, पागल, सिरफिरा, अंधा, काना, बहरा, लंगड़ा, लूला और अपाहिज जैसे शब्द हैं। इस तरह की अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। राजनीतिक चर्चा या चुनावी अभियान में दिव्यांगों को न्याय और सम्मान दिया जाना चाहिए। दिव्यांग के प्रति अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने पर दिव्यांगों के अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 92 के तहत कार्रवाई हो सकती है। इसमें 5 साल जेल तक का प्रावधान है।
राजनीतिक दल और उनके नेता टिप्पणी करने से बचें
आयोग ने कहा कि राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को किसी भी सार्वजनिक बयान या भाषण के दौरान विकलांगता पर अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को विकलांगता से संबंधित टिप्पणियों से सख्ती से बचना चाहिए। अगर विकलांग लोगों के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया जाता है तो विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 92 के प्रावधान लागू हो सकते हैं।
वेबसाइट पर घोषणा करेंशिष्टा चार का करेंगे उपयोग
चुनाव आयोग ने अपनी गाइडलाइन में बताया कि सभी राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर घोषित करें कि वे विकलांगता और लिंग-संवेदनशील भाषा और शिष्टाचार का उपयोग करेंगे। वे मानवीय समानता, गरिमा और स्वायत्तता का सम्मान करेंगे। सभी राजनीतिक दल और उनके प्रतिनिधि सीआरपीडी (विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन) में बताए गए शब्दावली का इस्तेमाल करेंगे। वे किसी अन्य शब्दावली का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
राजनीतिक दल कार्यकर्ताओं को दें ट्रेनिंग मॉड्यूल
दिशानिर्देश के अनुसार, सभी राजनीतिक दल अपने सार्वजनिक भाषणों, चुनाव अभियानों और कार्यक्रमों को सभी नागरिकों के लिए सुलभ बनाएंगे। पार्टियां विकलांग लोगों के साथ बातचीत आसान बनाने के लिए वेबसाइट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं। सभी राजनीतिक दल पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए विकलांगता पर एक ट्रेनिंग मॉड्यूल दे सकते हैं। वे भाषा से संबंधित विकलांग लोगों की शिकायतों को सुनने के लिए नोडल प्राधिकारी नियुक्त करेंगे।
सोशल मीडिया पोस्ट की करें समीक्षा, पहली बार राजनीतिक दलों पर सख्ती
भाषणों, सोशल मीडिया पोस्ट, विज्ञापनों और प्रेस विज्ञप्तियों सहित सभी प्रचार के साधनों की समीक्षा राजनीतिक दलों द्वारा की जानी चाहिए ताकि दिव्यांग लोगों के प्रति भेदभावपूर्ण भाषा के इस्तेमाल को रोका जा सके। बता दें, ऐसा पहली बार है कि चुनाव आयोग ने भाषा के प्रयोग को लेकर पार्टियों के लिए गाइडलाइन जारी की है।
अप्रैल-मई में हो सकते हैं लोकसभा चुनाव
पांच राज्यों, राजस्थान, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद अब सभी की निगाहें लोकसभा चुनाव पर टिकी हुई हैं। अगले साल यानी 2024 के अप्रैल-मई तक लोकसभा चुनाव होनी की उम्मीद है। बता दें, चुनाव आयोग द्वारा ये दिशानिर्देश विकलांग व्यक्तियों के लिए अपमानजनक भाषा का उपयोग करने से पार्टियों को रोकने के लिए जारी किए हैं। इसमें आयोग ने कहा है कि राजनीतिक पार्टियां दिव्यांग लोगों के प्रति अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने से बचें।