हाउस मास्टर होते थे फादर फिगर, सालों पहले सिखाई गई सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत करते थे गांव में श्रमदान

हाउस मास्टर होते थे फादर फिगर, सालों पहले सिखाई गई सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के तहत करते थे गांव में श्रमदान

सिंधिया स्कूल के 125 वें स्थापना दिवस का दो दिवसीय सेलिब्रेशन ग्वालियर में चल रहा है। शनिवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने यहां से बड़ी संख्या में देश और विदेश से आए पूर्व छात्रों व वर्तमान छात्रों को संबोधित किया। इस मौके पर सिंधिया एजुकेशन सोसायटी के अध्यक्ष व केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मौजूद रहे। आई एम भोपाल ने इस स्कूल में पढ़ चुके भोपाल में रहने वाले कुछ पूर्व छात्रों से बात की, जिनमें से कुछ स्थापना दिवस समारोह में भी मौजूद रहे। सभी का कहना है कि स्कूल ने उन्हें आत्मनिर्भर, समय की पांबदी व नैतिक कर्तव्यों का अहसास बचपन में ही करा दिया था, जिसने उनके व्यक्तित्व को निखारा।

किले से भागकर रात को रसमलाई खाते थे

मैंने 1983 में कक्षा चौथी में सिंधिया स्कूल में प्रवेश लिया था। यहां बिताए समय ने मुझे न सिर्फ आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि दूसरों के सम्मान की अहमियत व समय की पाबंदी सिखाई। मैंने दसवीं कक्षा तक यहां पढ़ाई की और मैं यहां मेधावी छात्र रहा। स्पोर्ट्स के अलावा लिटररी एक्टिविटीज में भी आगे रहता था। उन दिनों कभी-कभार हम किले से किसी तरह बाहर निकलकर स्टेशन पर रसमलाई-रबड़ी खाने जाया करते थे। 125 वें स्थापना दिवस के मौके पर मैं ज्योतिरादित्य सिंधिया व उनके परिवार से जय विलास पैलेस में मिला। वे पूर्व छात्रों से बहुत आत्मीयता से मिलते हैं। हमारी मुलाकात बहुत अच्छी रही। -मनीष राजोरिया, चेयरमैन, कॅरियर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन

शरारत नहीं की, क्योकिं हाउस शील्ड पाने का मौका नहीं छोड़ना चाहता था

मैंने 1958 में सिंधिया स्कूल में एडमिशन लिया, लेकिन होम सिकनेस से कारण मेरी मां मुझे वापस ले आईं और फिर कक्षा आठवीं में दोबारा वहां पढ़ने गया। स्कूल में हॉस्टल के हाउस मास्टर हमारे फादर फिगर होते थे, जिनसे से हम हर परेशानी साझा कर सकते थे। स्कूल में अलमारी व्यवस्थित रखने से लेकर जूते पॉलिश करना, धोबी को दिए जाने वाले कपड़ों की डायरी मेनटेन करना सभी कुछ खुद करना होता था। समयस मय पर अलमारी का निरीक्षण भी होता था। मैं टेबल टेनिस, क्रिकेट और फुटबॉल में अच्छा खिलाड़ी था। स्कूल में हमने पॉटरी, कारपेंटरी, पेंटिंग, मूर्तिकला सभी कुछ सीखा। जब मैंने बायोलॉजी लिया तब तय हो गया था कि मुझे डॉक्टर बनना है। स्कूल जाने से पहले सुबह के समय हमें रिवीजन करना होता था। स्कूल में ओवरऑल कैरेक्टर बिल्डिंग होती थी। मुझे याद है उस जमाने में सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी निभाने के लिए हम शिवपुरी और अमरकंटक श्रमदान के लिए जाया करते थे। मैंने शिवपुरी में सड़क निर्माण का कार्य भी किया था। मैंने स्कूल में किसी तरह की शरारत नहीं की क्योंकि तब इंटरहाउस शील्ड मिलती थी। किसी एक की शरारत की वजह से हम वो शील्ड हासिल करने से चूक सकते थे, इसलिए सभी अनुशासन को महत्व देते थे और यह मेरे जीवन में अहम रहा। -डॉ. निर्भय श्रीवास्तव, ऑर्थोपेडिशियन

हाउस मास्टर हमारे लिए पैरेंट्स जैसे थे

मैंने सिंधिया स्कूल में 1960 में एडमिशन लिया था और स्कूल के दिन मेरे यादगार दिन है। मैं हॉकी, फुटबॉल और एथलेटिक्स में सक्रिय था। डिबेट कॉम्पिटीशन में हमेशा मेरा पहला या दूसरा स्थान रहता था। मेरा पूरा बचपन बोर्डिंग स्कूल में गुजरा, क्योंकि पहली से तीसरी कक्षा तक मैं बिड़ला स्कूल, पिलानी में था। उस समय टीचर्स की डांट भी हमें प्यार ही लगती थी, आज जैसा नहीं कि शिक्षक की डांट का बुरा मान गए। हॉस्टल में हाउस मास्टर की बहुत अहमियत थी, क्योंकि उनका स्थान हमारे लिए पैरेंट्स की तरह था। मैं एग्रीकल्चर से संबंध रखने वाली फैमिली से था लेकिन जब स्कूल में एक्सपोजर मिला तो मैंने एनसीसी की एयर विंग जॉइन की और फिर एयरफोर्स में कॅरियर बनाया। सिंधिया स्कूल में इतना काबिल बना दिया जाता है कि हम जिंदगी में जो चाहे वो कर सकते हैं। -पंकज द्विवेदी, रिटायर्ड विंग कमांडर