उपेक्षा की शिकार हैं ग्वालियर-चंबल की ऐतिहासिक धरोहरें
ग्वालियर। ग्वालियर-चंबल संभाग का इतिहास बहुत समृद्ध और गौरवशाली रहा है। चंबल क्षेत्र में पहचान को तरस रही प्राचीन धरोहरों को फलक पर लाने की कवायद ठंडे बस्ते में है। इस इलाके के पर्यटन स्थल और पुरातात्विक धरोहरें सैलानियों को अपनी ओर खींचने में सक्षम हैं, मगर सरकार के नुमाइंदों द्वारा इस दिशा में प्रयास नहीं किए जा रहे। इस क्षेत्र के पयर्टन स्थलों का सर्किट बनाकर देशीविदेशी पर्यटकों को लुभाया जा सकता है। इससे क्षेत्र का विकास तो होगा ही, साथ ही युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। पुरातात्विक और प्राकृतिक संसाधनों से युक्त चंबल की वादियों को देश भर के लोग नजदीकी से देखना चाहते हैं।
भिंड में अटेर का किला, खैराहट का ब्रिक टेंपल, मुरैना जिले के ककनमठ, 64 योगिनी मंदिर, बटेश्वरा के मंदिर, मितावली, गोहद का किला, आलमपुर की छतरी आदि के संरक्षण एवं संवर्धन से पर्यटन को गति मिल सकती है। इन पुरातत्व स्थलों की उचित देखरेख न होने से इनका क्षरण हो रहा है। ग्वालियर किले पर स्थित मान मंदिर हमारी धरोहर है। यह कला, संस्कृति, वास्तुशिल्प की थाती है। इसे महाराजा मानसिंह तोमर ने 1486-1517 में निर्मित कराया था। मान मंदिर की खूबसूरती, करीने से निखारी गई नक्काशी आज भी देखते ही बनती है। मानसिंह तोमर ने मान मंदिर के समीप ही अपनी प्रेयसी रानी मृगनयनी के लिए गूजरी महल बनवाया था।
चौसठ योगिनी मंदिर
मुरैना का चौसठ योगिनी मंदिर मितावली में स्थित पहाड़ी पर स्थित है। यह भारत के उन चौसठ योगिनी मंदिरों में से एक है। यह मंदिर 9वीं सदी में गुर्जर प्रतिहार वंश के 10वें शासक सम्राट देवपाल गुर्जर ने बनवाया था। खास बात यह है कि ब्रिटिश वास्तुविद् सर एडविन लुटियंस द्वारा बनाया गया भारत का पुराना संसद भवन इसी चौसठ योगिनी मंदिर की आकृति का है।
ककनमठ मंदिर
मुरैना जिले का ककनमठ मंदिर एक हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। ये मंदिर जमीन से लगभग 115 फीट ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर थोड़ा खंडहर अवस्था में है। यह प्राचीन मंदिर शिव भगवान को समर्पित है।
फिल्म और वेब सीरीज के लिए बेहतर लोकेशन
चंबल क्षेत्र में कई ऐसी लोकेशन हैं, जो बॉलीवुड फिल्म व वेब सीरीज के निमार्ताओं को पसंद आ सकती हैं। एंटरटेनमेंट लिमिटेड के मालिक जुल्फिकार अली ने दो साल पूर्व यहां फोटो शूट किए थे, उन्हें फिल्म और वेब सीरीज के प्रोड्यूसर व डायरेक्टर को भेजा गया था। डायरेक्टर्स को यह लोकेशन पसंद भी आ गई थी, लेकिन सरकार से प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण बात आगे नहीं बढ़ सकी।
सरकार को ग्वालियर-चंबल अंचल के ऐतिहासिक धरोंहरों के संरक्षण व संवर्धन पर ध्यान देना चाहिए। इनकी उपेक्षा के कारण यहां सैलानी नहीं आ रहे। सैलानी आएंगे तो लोगों को रोजगार भी मिलेगा। केदारसिंह नरवरिया, फिल्म अभिनेता भिंड
ग्वालियर-चंबल अंचल में कई ऐतिहासिक व पुरातात्विक धरोंहरें मौजूद हैं। यदि केंद्र व राज्य सरकार और पर्यटन विभाग मिलकर इनके संरक्षण और संवर्धन पर ध्यान देकर टूरिस्ट सर्किट बना दें तो सैलानियों को लुभाया जा सकता है। साथ ही इससे रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। ऐसा होने पर क्षेत्र विश्व पर्यटन के पटल पर आ सकता है। इस अचंल में राम वन गमन पथ भी चिन्हित किए गए हैं, लेकिन उन पर काम होना बाकी है। डॉ. शांतिदेव सिसौदिया, विभागाध्यक्ष पुरातत्व विभाग, जीवाजी विश्वविद्यालय