महिला आयोग में 3 साल से सुनवाई बंद, जिस हॉल में लगती थी बेंच, वहां फाइलों के ढेर
भोपाल। मप्र में महिलाओं की अनुमानित आबादी 4 करोड़ से अधिक है। लेकिन आधी आबादी की समस्याओं, शिकायतों की सुनवाई के लिए गठित राज्य महिला आयोग में तीन साल से ताले लटके हैं। प्रदेश के दूर-दराज इलाकों से महिलाएं तमाम परेशानी सहते हुए रोजाना राजधानी स्थित महिला आयोग के कार्यालय पहुंचती हैं। यहां उनसे आवेदन तो ले लिया जाता है, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है। इधर, आयोग अध्यक्ष और सदस्यों के न होने से कार्यायल में फाइलों का ढेर बढ़ता जा रहा है। जिस हॉल में कभी आयोग की बेंच लगाकर महिलाओं को त्वरित न्याय दिलाने की कार्यवाही होती थी, वहां अब केवल पेंडिंग फाइल्स का ढेर नजर आ रहा है। जानकारी के अनुसार, वर्तमान में पेंडेंसी बढ़कर 18 हजार से अधिक हो गई है। कितनी शिकायतें पेंडिंग आयोग में वर्तमान में पेंडिंग प्रकरणों की संख्या 18,323 हो गई है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में आयोग के पास 4,115 शिकायतें पहुंची थी। इस वर्ष एक अप्रैल से अब तक 1,355 महिलाएं आयोग से गुहार लगा चुकी हैं।
2019 में लगी थी महिला आयोग की अंतिम बेंच
आयोग में अध्यक्ष नहीं होने से बैंच नहीं लग रहीं हैं, इससे दोनों पक्षों के बीच सुनवाई पर असर पड़ रहा है। लेकिन आयोग के द्वारा प्रकरणों में एसपी और कलेक्टरों से जांच प्रतिवेदन लगातार लिए जा रहे हैं। आयोग सिर्फ प्रकरणों में निर्णय के बाद सिफारिश करता है। - तृप्ति त्रिपाठी, सचिव, राज्य महिला आयोग जानकारी के अनुसार, आयोग की अंतिम बेंच जनवरी 2019 में लगी थी। इसके बाद बेंच नहीं बैठी। दरअसल, कांग्रेस के कार्यकाल में मार्च 2020 में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति हुई थी, लेकिन सरकार गिरने के बाद नियुक्ति का मामला हाईकोर्ट में चला गया और सुनवाई शुरू नहीं हो सकी। इस साल अप्रैल में अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो चुका है। हालांकि, अध्यक्ष रही शोभा ओझा ने पिछले साल ही इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से पद आज तक खाली पड़ा हुआ है।
जिम्मेदार अधिकारी ने नहीं उठाए फोन : इस मामले में महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी से फोन पर बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। मैसेज भेजकर पक्ष जानने की भी कोशिश की गई, लेकिन उसका भी जवाब नहीं मिला।
इन तीन मामलों से समझिए महिलाएं किस कदर हो रहीं परेशान
केस-1भोपाल की राशि (परिवर्तित नाम) ने वर्ष 2021 में महिला आयोग में शिकायत की थी कि वर्क फ्रॉम होम के चलते बॉस कभी भी वीडियो कॉल लगा देते हैं। इस दौरान वह न तो भाषा का ध्यान रखते हैं और न ही खुद के कपड़ों और बॉडी पॉश्चर का। महिला की शिकायत को दो साल बीत चुके हैं। आयोग की ओर से आॅफिशियल जांच के लिए लिखा गया था, जिसके बाद उसे नौकरी छोड़नी पड़ी, लेकिन न्याय नहीं मिल पाया। आज भी वह न्याय की आस लगाए बैठीं है।
केस-2जबलपुर की एक महिला जनशिक्षक कमला (परिवर्तित नाम) दो साल से आयोग से लेकर पुलिस और स्कूल शिक्षा विभाग के चक्कर काट रही हैं। करीब दो साल पहले स्कूल के हेडमास्टर ने परेशान करने के उद्देश्य से पीड़िता के जरूरी रिकॉर्ड जला दिए और तनख्वाह रोक दी। महिला आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा भी कि महिला की शिकायत सही है, लेकिन विभाग ने मामले में अब तक कार्यवाही नहीं की है। मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
केस-3 इंदौर की सविता (परिवर्तित नाम) बीते तीन साल से अपने घर के सामने लगने वाले अवैध ठेले से परेशान है। ठेले पर मनचले जमा रहते हैं, जिससे सविता और उनके परिवार का घर के आंगन में खड़े रहना दूभर हो गया है। घर के बाहर गंदगी भी रहती है। तीन साल पहले सविता ने इसकी शिकायत नगर-निगम और कलेक्टर जनसुनवाई में की थी। बाद में सीएम हेल्पलाइन में भी गुहार लगाई। इसके बाद उसे और परेशान किया जाने लगा। बीते साल सविता ने महिला आयोग में शिकायत की थी।