क्वारी, बेसली और झिलमिल के सूखने से गिरा भू-जल, लोग कर रहे पलायन
ग्वालियर/भिंड। नदियों के जल का अत्यधिक दोहन, संरक्षण की अनदेखी करने से जीवनदायिनी चंबल की 3 सहायक नदियों का अस्तित्व संकट में है। मार्च के दूसरे सप्ताह में ही तीनों नदियों का गला सूख गया है। बरसात के मौसम में अपने रौद्र रूप के लिए कुख्यात क्वारी व झिलमिल नदी की इन दिनों सांसे थम गई हैं। इन नदियों में कुछ ही स्थानों पर पानी दिखाई देता है। विशेषकर क्वारी के इन दिनों सूखने से वन्य प्राणियों सहित पशुपालन करने वालों को भी समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। पशुओं को पानी भी नसीब नहीं हो रहा है। पानी सूख जाने के कारण जंगली जानवर सियार, नीलगाय, खरगोश, जंगली सुअर आदि पानी की तलाश में गांवों तक आने लगे हैं। क्वारी से लगभग 350 गांव जुड़े हुए हैं। लेकिन, धार के टूटने से कई तरह की समस्याएं खड़ी हो गई है।
कछारी खेती पर पड़ा विपरीत प्रभाव
किसान नदी किनारों पर कछारी खेती कर खूब मुनाफ कमाते थे। लेकिन, अब ये इतिहास हो गया है। नदियों के किनारों की खेती वीरान हो चुकी है। ये नदियां बरसात में नुकसान तो पहुंचाती है, लेकिन गर्मी में लाभकारी नहीं रहीं।
संधारण की कोई योजना नहीं, संकट में अस्तित्व
नदियों का संधारण कराए जाने की कोई योजना नहीं होने के कारण उनके अस्तित्व पर संकट आ गया है। गोहद के बेसली डेम से निकली बेसली नदी अपना वजूद खोने की कगार पर है। गाता, गितौर आदि एक दर्जन से अधिक गांवों के जानवरों के लिए पानी का संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में ग्रामीणों को अपने अनुपयोगी जानवर आवारा छोड़ने पड़ रहे हैं। दंदरौआ के पास से निकली झिलमिल नदी में बरसात के दिनों में जलस्तर इतना बढ़ जाता है कि दतिया की ओर जाने का रास्ता ही बंद हो गया है।
तीन दशक में 50 फीट खिसका भूजल स्तर
क्वारी, बेसली तथा झिलमिल नदी किनारे बसे गांव का जलस्तर वर्ष 1990 तक 18 से 20 फीट पर था। नदियों के किनारे बसे गांवों का भूजल स्तर 30 साल में 50 फीट नीचे चला गया है। सैकड़ों हैंडपंप सूख गए है। इनमें से 40 फीसदी को डेड घोषित किया जा चुका है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि 30 साल पहले तक नदियों में बरसात तक पानी भरा रहता था। किसान आसानी से खेती कर लेते थे और जानवरों को भी पीने का पानी आसानी से मिल जाता था। 50 फीसदी से अधिक लोग पलायन कर चुके है।
नदियों के सूख जाने से गांव में पानी का संकट गहरा गया है। नलों में भी अतिरिक्त पाइप डालने पड़े हैं। गर्मी के मौसम में होने वाली सब्जी की फसल भी प्रभावित हुई है। पानी की कमी के कारण बड़ी संख्या में लोगों ने गांव से पलायन कर दिया है। -प्रो. इकबाल अली, पर्यावरणविद्, भिंड
भिंड में पर्यावरण की समस्या है। इस बार समय से पहले ही गर्मी ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए है। नदियों में पानी नहीं है। पशुपालन और कछारी खेती के लिए संकट पैदा हो रहा है। इस संबंध में शासन को प्रस्ताव भेजा जाएगा। - वरुण अवस्थी, एसडीएम, मेहगांव