स्वर्ण रेखा नदी : टेम्स बनाने चले थे, नाले में हो गई तब्दील

स्वर्ण रेखा नदी : टेम्स बनाने चले थे, नाले में हो गई तब्दील

ग्वालियर। ग्वालियर के बीचों-बीच से बहने वाली स्वर्ण रेखा नदी कभी यहां की शान और जीवन रेखा हुआ करती थी। लेकिन, आबादी बढ़ने, फैक्ट्रियों व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के अपशिष्ट के चलते सुंदर नदी अब प्रदूषित नाला बन गई है। ढाई दशक से इसे बचाने और इसमें लंदन की टेम्स नदी की तर्ज पर साफ पानी, नाव चलाने की योजना जमीन पर नहीं उतर पाई। इस कवायद में करोड़ों खर्च भी हुए। लेकिन, नतीजा सिफर ही रहा।

शहर की बुझाती थी प्यास

इस नदी का उद्गम हनुमान बांध से हुआ है। रियासत काल से स्वर्ण रेखा नदी से शहर की पानी की जरूरत पूरी होती थी। एक जमाने में इसे सर्वश्रेष्ठ नदी का खिताब भी दिया गया, लेकिन जब से इसके किनारों पर कॉन्क्रीट बढ़ा तब से नगर का भू-जल पाताल की ओर सरकता जा रहा है। आज हालात यह हैं कि पानी के लिए त्राहि-त्राहि है। पर्यावरणविद् हरेन्द्र शर्मा का कहना है कि नदी के बहाव क्षेत्र को सीमेंट-कॉन्क्रीट करने से नदी को तो नुकसान हुआ ही, वनस्पति के लिए भी यह घातक साबित हुआ।

सपना नहीं हुआ साकार

नदी में कांक्रीटीकरण व बाउंड्री के लिए वर्ष 2000 में केंद्र ने 46 करोड़ मंजूर किए थे, जिसमें 2009 से पहले स्वर्ण रेखा को सिंचाई विभाग ने पक्का कराया और पीएचई ने शहर के सीवर को बाहर ले जाने के लिए स्वर्ण रेखा के नीचे सीवर लाइन डाली गई। लेकिन, अब भी गंदा पानी इसमें बह रहा है। नगर निगम ग्वालियर के नोडल अधिकारी शिशिर श्रीवास्तव बताते हैं कि वॉटर रिसोर्सिंग डेवलपमेंट जैसे कार्यों के लिए एक दशक पहले स्वर्ण रेखा को सर्वश्रष्ठ नदी का पुरस्कार मिल चुका है।