तेज गर्मी का असर, 2050 तक 5 गुना बढ़ जाएंगी मौतें
नई दिल्ली। अगर गर्मी इसी तरह से बढ़ती रही तो इस सदी के मध्य यानी 2050 तक दुनिया भर में तेज गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या करीब पांच गुना तक बढ़ सकती है। लैंसेट काउंटडाउन आॅन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज की आठवीं वार्षिक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों पर जोर दिया गया है और सरकारों, कंपनियों से आग्रह किया गया है कि वे तेल और गैस में निवेश करना छोड़ें। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अकेले लू के कारण 2041-60 तक 52.49 करोड़ अतिरिक्त लोगों को मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है। इससे कुपोषण का वैश्विक खतरा और बढ़ जाएगा। इधर रिपोर्ट कहती है कि साल 2022 के दौरान लोगों को 86 दिनों तक खतरनाक गर्मी का सामना करना पड़ा। इसमें से गर्मी की 60 प्रतिशत घटनाएं ऐसी थीं, जिनके लिए इंसान की गतिविधियां जिम्मेदार थीं। जीवाश्म र्इंधन में निवेश करने वाली संस्थाओं की लापरवाही की भी इस रिपोर्ट में निंदा की गई है।
संक्रामक रोगों की होगी वृद्धि
रिपोर्ट में सदी के मध्य तक प्राणघातक संक्रामक रोगों के प्रसार में वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, जिसमें वाइब्रियो रोगजनकों के लिए उपयुक्त समुद्र तट की लंबाई 17-25 प्रतिशत तक बढ़ रही है। डेंगू की संचरण क्षमता 36-37 प्रतिशत तक बढ़ रही है। वाइब्रियो रोगजनक हैजा जैसी खाद्य जनित बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं।
भारत पर पड़ रहा असर, 2022 में 86 दिन पड़ी थी खतरनाक गर्मी
- 2018 से 2022 तक गर्मियों का औसत तापमान 0.5 डिग्री बढ़ चुका है।
- 2022 में भारत को गर्मी की वजह से 54 फीसदी काम के घंटों का नुकसान हुआ।
- 2013-2022 के दौरान हर नवजात ने साल में औसत 7.7 दिन जानलेवा लू का सामना किया।
- 2020 में पीएम 2.5 से जुड़ी 8,15,000 मौते हुईं। 2005 की तुलना में ये 35 प्रतिशत ज्यादा थीं।
- 2020 में हुई मौतों में से 44 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन और 22 प्रतिशत बायोमास की वजह से हुई थीं।
- देश में साल 2022 में 86 दिन तक खतरनाक गर्मी पड़ी थी।
शोध में 114 वैज्ञानिक शामिल
रिपोर्ट दुनियाभर के 52 अनुसंधान संस्थानों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के 114 वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता पर आधारित है। विश्लेषण में पाया गया कि 1990-2000 की तुलना में 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में गर्मी से संबंधित मौतों में 85% की वृद्धि हुई है।
मौजूदा कोशिशें पर्याप्त नहीं
जलवायु से जुड़े खतरों को रोकने के लिए मौजूदा कोशिशें पर्याप्त नहीं हैं। रिपोर्ट में गर्मी की वजह से स्वास्थ्य को हो रहे नुकसान पर भी चिंता जाहिर की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक मौसम की मार से पानी और खाद्य उत्पादन पर संकट है। इससे वैश्विक कुपोषण का खतरा भी बढ़ा है। - डॉ. मरीना रोमानेलो, एग्जेक्यूटिव डायरेक्टर, लैंसेट काउंटडाउन