डीएवीवी में वर्षों से स्थायी शिक्षकों के अभाव के साथ एमए संस्कृत, हिन्दी के नहीं मिल रहे छात्र

डीएवीवी में वर्षों से स्थायी शिक्षकों के अभाव के साथ एमए संस्कृत, हिन्दी के नहीं मिल रहे छात्र

इंदौर। नैक का दर्जा प्राप्त देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ कम्पेरेटिव लेंगुएज एंड कल्चर (तुलनात्मक भाषा एवं संस्कृति अध्ययनशाला) में जर्मन और फ्रेंच जैसे डिप्लोमा कोर्स और एमए संस्कृत-ज्योतिष जैसे विषयों के लिए न तो लंबे समय से स्टूडेंट्स मिल रहे हैं, न ही स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति हुई है। एमए इंग्लिश में 20 प्रतिशत तो एमए हिन्दी में 40 फीसदी सीटें खाली हैं। छात्रों का रुझान बीते सालों में भाषायी शिक्षा की तरफ घटा है... तो वहीं शासकीय जीजाबाई कॉलेज में भी एमए (फिलोसॉफी) की पूरी की पूरी 95 सीटें छठवीं काउंसिंलिंग के बाद भी खाली हैं।

यहां एडमिशन देख रहीं प्रोफेसर सुधा कपूर बताती हैं कि काउंसिंलिंगग के आखिरी राउंड में जब किसी को कोई भी कोर्स नहीं मिलता है, तब कुछ आवेदक फिलोसॉफी पाठ्यक्रम की तरफ मुड़ते हैं। उधर, चिकित्सा शिक्षा से लेकर इंजीनियरिंग तक के पाठ्यक्रम को हिंदी में सुलभ बताने की केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षाएं जमीन पर मेल खाते हुए नहीं दिखती हैं, मसलन- राज भाषा हिंदी की 30 छात्रों की क्षमता लिटरेचर पाठ्यक्रम को भी महज 18 विद्यार्थी ही नसीब हुए हैं। छात्रों की अनुपस्थिति के साथ ही यह भी बड़ी विडम्बना है कि यहां स्थायी शिक्षकों का भी अभाव है। विशेषज्ञ इसे रोजगारपरक शिक्षा के प्रति छात्रों के झुकाव को मानते हैं। स्कूल ऑफ लेंगुएज में महज 4 अंग्रेजी और 4 हिन्दी के अस्थायी फेकल्टी ही हैं।

‘शिक्षा विजडम रोजगार के लिए ले रहे हैं छात्र’

विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ. चंदन गुप्ता बताते हैं कि ये हालत इंदौर की ही नहीं, बल्कि सब जगह ऐसी ही स्थिति है। भाषायी शिक्षा के प्रति छात्रों का रुझान घटा है। इसका मूल कारण आज शिक्षा विजडम से नहीं, रोजी-रोटी अर्जित करने की हो गई है। रोजगारपलक पाठ्यक्रमों विशेष रूप से डिग्री कोर्सों में खासा रिसपोन्स विद्यार्थियों का रहता है। आज भी डीएवीवी में एमबीए (फाइनेंस, मार्केटिंग, ह्यूमन रिसोर्स), एमसीए, आईटी, कम्प्यूटर साइंस की डिमांड है।

‘भाषायी शिक्षा में रोजगार मिले, तभी उत्थान’

स्कूल ऑफ लेंगुएज के एचओडी डॉ. ज्ञानप्रकाश बताते हैं कि हिन्दी या अन्य भाषा का उत्थान तब तक नहीं हो सकता है, जब तक इस भाषा में लोगों को रोजगार न मिले। आईटी कंपनी हो या कोई बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी... कहीं भी हिन्दी को प्राथमिकता नहीं दी जाती। अंग्रेजी में आज भी विद्यार्थियों का रुझान थोड़ा बहुत बरकरार है। अंग्रेजी से एमए अधिकतर ऐसे विद्यार्थी ही करते हैं, जिन्हें आगे पीएससी जैसी प्रतियोगी परीक्षा या अध्यायन कार्य में कॅरियर बनाना है। इनमें भी लड़कियों की संख्या अधिक है।

‘प्रतियोगी परीक्षाओं में मिलेगी एमए से मदद’

स्कूल ऑफ लेंगुएज से एमए इंग्लिश लिट्रेचर कर रहीं नीमच निवासी पूजा जोशी बताती हैं कि वे आगे सरकारी नौकरी में शैक्षणिक कार्य में जाना चाहती हैं, इसलिए एमए इंग्लिश से कर रही हैं। पूजा बताती हैं कि उनकी क्लास में 10 लड़कों समेत 40 विद्यार्थी हैं, जिनमें अधिकतर का आगे का लक्ष्य शिक्षण कार्य में ही भविष्य बनाना है। चेतना बताती हैं कि सेट, पीएससी जैसी परीक्षा देने में मदद मिलेगी।