सबूतों के अभाव और सही जांच नहीं होने से 68% केसों में आरोपी बरी

सबूतों के अभाव और सही जांच नहीं होने से 68% केसों में आरोपी बरी

भोपाल। सागर जिले की 12 साल की रोशनी (परिवर्तित नाम) की पीड़ा विचलित करने वाली है। करीब 7 साल पहले अंधेरे का फायदा उठाकर किसी ने उसके साथ दुष्कर्म कर उसे बुरी तरह जख्मी कर दिया। उसे गंभीर हालत में हमीदिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था। पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद आरोपियों पर कोर्ट में दोष सिद्ध नहीं हो सका। इधर, रोशनी आज भी डरी-सहमी रहती है। किसी अनजान को देखते ही सहम जाती है। उसकी लगातार काउंसलिंग की जा रही है। यह सिर्फ अकेला मामला नहीं है। मप्र में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में दोषियों को सजा मिलने की दर काफी कम है। पीएचक्यू से प्राप्त जानकारी के अनुसार, बीते एक साल में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सिर्फ 32.5 फीसदी प्रकरणों में आरोपियों को सजा मिलसकी है। यह आंकड़े न्यायालय से दोषमुक्त और दोष सिद्ध प्रकरणों की विवेचना में सामने आए हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार, जुलाई 2022 से जून 2023 तक महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 6,359 प्रकरणों में सुनवाई के बाद फैसला हुआ। इसमें से 4,811 मामलों में सजा नहीं हो सकी और आरोपी बरी कर दिए गए। सिर्फ 32 फीसदी यानी 1,548 प्रकरणों में ही दोष सिद्ध किया जा सका और आरोपियों को सजा हुई।

साक्षी संरक्षण योजना की हुई थी शुरुआत

दोष सिद्धि की दर बढ़ाने के लिए बीते साल साक्षी संरक्षण योजना लागू की गई थी। इसके तहत हर जिले से चिह्नित अपराधों को योजना में शामिल किया जाना है। इसका उद्देश्य महिलाओं से हिंसा करने वाले आरोपियों को कोर्ट में अधिकतम सजा दिलाना है। इसके लिए केस में गवाहों को न केवल संरक्षण दिया जाना है, बल्कि कोर्ट में पेशी की तय तारीख के बारे में पहले से अवगत कराया जाएगा।

सुपरविजन की कमी के कारण छूट जाते हैं आरोपी

महिला अपराधों में सजा का प्रतिशत कम होने के लिए ‘लैक आॅफ सुपरविजन’ जिम्मेदार है, क्योंकि इंवेस्टीगेशन करने वाले के ऊपर आधा दर्जन अधिकारी होते हैं। बावजूद सारी जिम्मेदारी प्रॉसीक्यूशन पर डाल दी जाती है। सुपरविजन करने वाले केस डायरी में नोट नहीं लगाते, जिससे जांचकर्ता ही घेरे में रहता है। - अरुण गुर्टू, पूर्व पुलिस महानिदेशक

पीड़िता के बयान से पहले काउंसलिंग होनी चाहिए

महिला अपराधों में सजा के मामले काफी कम होते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण पुलिस की कमजोर चार्जशीट भी है। दरअसल, पुलिस कई बार मौके से फॉरेंसिक एविडेंस लेने में लापरवाही बरतती है। पीड़ित के बयानों को भी ढंग से नहीं लिया जाता। कई बार तो पीड़ित के अभिभावकों के बयान लेकर ही खानापूर्ति कर ली जाती है। लंबे समय तक मामला खिंचने के कारण गवाह कोर्ट में बयान से पलट जाते हैं। सबसे अहम बात यह कि पीड़िता की बयान से पहले अच्छे ढंग से काउंसिलिंग होनी चाहिए, जो कि अभी देश में बहुत कम होती है। - राजेश सक्सेना, सीनियर एडवोकेट, हाईकोर्ट इंदौर बेंच