जीते जी नहीं की मां-बाप की कद्र, अब श्राप के डर से तर्पण करने वृद्धाश्रम में ढूंढ रहे उनकी निशानियां

किसी को अतृप्त आत्मा से अनिष्ट का डर, तो किसी को बुरे सपने आ रहे

जीते जी नहीं की मां-बाप की कद्र, अब श्राप के डर से तर्पण करने वृद्धाश्रम में ढूंढ रहे उनकी निशानियां

भोपाल। वृद्धाश्रम में माता-पिता को छोड़ने के बाद अधिकतर लोग उन्हें पलटकर भी नहीं देखते। ज्यादातर मामलों में दाह संस्कार के लिए भी नहीं पहुंचते। लेकिन बेटे अब श्राद्ध पक्ष में माता-पिता की निजी सामग्री मांगने वृद्धाश्रम पहुंच रहे हैं। इन बच्चों को अब पितरों के श्राप की चिंता सता रही है। ऐसे में उनका श्राद्ध करने परिजन का सामान या कोई निशानी ढूंढते हुए वृद्धाश्रम के चक्कर काट रहे हैं।

यह है कारण:

ज्यादातर लोगों ने कहा कि उन्हें माता-पिता की अशांत आत्मा का भय सताता है। कुछ ने बताया कि उन्हें बुरे सपने आते हैं। वहीं, दो लोगों ने कहा कि उनके बिजनेस, नौकरी, जीवन में असफलता व अशांति है।

डेथ सर्टिफिकेट के कारण दबाव:

आसरा, अपना घर और आनंदधाम से मिली जानकारी के अनुसार, ज्यादातर बच्चे अंतिम संस्कार करने नहीं आते। हालांकि, बैंक खाते, संपत्ति के कारण उन्हें मृत्यु प्रमाण पत्र जल्दी चाहिए।

केस-1   उप्र का एक परिवार 3 माह पहले आसरा वृद्धाश्रम पहुंचा। मां आसरा में रहती थीं और एक साल पहले मौत हो गई थी। परिवार का कहना था कि बेटी की शादी करनी है। मां का अंतिम संस्कार नहीं करने के कारण लोग तरह-तरह की बात करते हैं। 78 वर्षीय महिला ने आसरा में एक पौधे को सपोर्ट देने अपनी साड़ी का टुकड़ा बांधा था। परिजन वही साथ ले गए।

केस-2  अपना घर वृद्धाश्रम पहुंचे विदिशा जिले के 36 वर्षीय युवक ने कहा कि पिता का कोई सामान ढूंढकर दे दीजिए, उसे पितृ दोष से मुक्त होना है। बहुत पूछने पर युवक ने बताया कि बीते डेढ़ साल से उसका मन अशांत है। हर जगह लॉस हो रहा है। दंपति ने पंडित से सलाह ली, तो उन्हें पितृ दोष की बात पता चली। युवक के 67 वर्षीय पिता की दो साल पहले वृद्धाश्रम में मृत्यु हुई थी।

बुजुर्गों के बीमार होने, यहां तक कि मृत्यु के बाद भी बच्चों या परिजन को फोन करने पर वो नहीं आते। कुछ महीनों बाद वे लालच में उनका सामान खंगालने आते हैं। इस साल 3 बुजुर्गों के परिजन पितृ दोष से मुक्ति पाने उनकी निशानी लेने पहुंचे। - माधुरी मिश्रा, संचालिका, अपना घर