कूनो में दक्षा की मौत, अधिकारियों का ब्रीडिंग प्लान फेल
ग्वालियर। पालपुर-कूनो राष्ट्रीय उद्यान में मंगलवार को एक और मादा चीता की मौत हो गई। बाड़ा क्रमांक-1 में मेल चीता के साथ मेटिंग के दौरान हुई हिंसक मुठभेड़ उसकी जान जाने का कारण बनी।
जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, 23 अप्रैल को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के महानिरीक्षक डॉ. अमित मलिक, भारतीय वन्यजीव संस्थान के डॉ.कमर कुरैशी, दक्षिण अफ्रीका के प्रो.एड्रियन टोर्डिफ और मेटा पॉपुलेशन इनिशिएटिव के विंसेंट वान डेर मर्व की एक बैठक हुई। बैठक में यह तय किया गया था कि दक्षिण अफ्रीका के मेल चीते अग्नि और वायु की मादा चीता दक्षा के साथ मेटिंग कराई जाएगी। मेल चीतों ने 6 मई को 7 नंबर बाड़े से 1 नंबर बाड़े में प्रवेश किया। बता दें कि पिछले 43 दिन में कूनों में तीन चीतों की मौत हो चुकी हैं।
हमेशा के लिए शांत हो गई ‘विंध्या’ की दहाड़
विंध्य की शान ‘विंध्या’ की दहाड़ अब व्हाइट टाइगर सफारी में सुनाई नहीं देगी। पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रही सफेद बाघिन विंध्या की मंगलवार सुबह 3:00 बजे मौत हो गई। विंध्या की मौत होने की जानकारी लगते ही रीवा और सतना में तैनात वन विभाग के आला अधिकारियों के कान खड़े हो गए। आनन-फानन में सीसीएफ, सतना वन मंडल अधिकारी सहित पूरा अमला व्हाइट टाइगर सफारी मुकुंदपुर पहुंच गया। बताया जाता है कि विंध्य प्रदेश का नाम गौरवान्वित करने के लिए जो व्हाइट टाइगर सफारी शुरू की गई है, वहां पर वन्य प्राणियों के देखभाल के लिए बेहतर इंतजाम अब तक संभव नहीं हो पाए हैं।
एक्सपर्ट कमेंट्स
इस चीते की मौत का कारण आपसी संघर्ष बताया जा रहा है। यदि यही कारण है, तो वन्य प्राणियों में आपसी संघर्ष स्वाभाविक है। टाइगर में आपसी संघर्ष होता है तो एक की मौत होती है या वह घायल हो जाता है। वैसे मेरा मानना है कि कूनो में चीतों के लिए वातावरण अनुकूल है और वह यहां सर्वाइव भी कर सकेंगे। यदि उन्हें बाडे में रखेंगे तो सफारी और जंगल में क्या फर्क रहेगा। असल में उन्हें एक ही जगह छोड़ दिया गया है, उन्हें दूसरे पार्क में छोड़ना चाहिए था। उसके लिए दूसरी जगह तैयार होना चाहिए। - डॉ. एमके रणजीत, वाइल्ड लाइफ
मादा चीते की मौत का कारण मुझे पता नहीं है। यदि मेटिंग और मादा को लेकर चीतों में संघर्ष हुआ तो नर चीते की मौत या घायल होना था या फिर वह घायल होकर भाग जाता है। यह सही है कि मेटिंग के दौरान चीता या टाइगर एग्रेसिव हो जाते हैं। चीतों को कूनो में बसाने की योजना फेल है, यह कहना जल्दबाजी होगी। अभी तो उन्हें नेचुरल हेबीटेट में रखा गया है। चीतों का गांव में घुस जाना या भाग जाना, चलता रहेगा। एक-दो घटनाओं से यह नहीं कहा जा सकता कि चीता प्रोजेक्ट फेल हो गया। -अनूप नायक, पूर्व सदस्य सचिव, टाइगर प्रोजेक्ट, एनटीसीए