लोकनृत्यों से कराई सांस्कृतिक परिक्रमा, ट्रांसजेंडर व विदेशी लेखकों ने किया संवाद
रवींद्र भवन का सभागार गुरुवार को युवा ऊर्जा से सराबोर था क्योंकि भारत के 30 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के युवा कलाकारों ने एशिया से सबसे बड़े साहित्य उत्सव उन्मेष में मौजूद देश- दुनिया के साहित्यकारों को भारत की सांस्कृतिक परिक्रमा कराई। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस आयोजन का शुभारंभ किया और इसी के साथ चार दिवसीय साहित्य उत्सव की शुरुआत हुई। इस मौके पर लगभग 70 फीसदी युवा कलाकारों को लोकनृत्यों को पेश करने का मौका दिया गया। इन कलाकारों ने मंच से बैक-टू-बैक अपनी राज्य के प्रसिद्ध लोकनृत्यों की सुनहरी छटा बिखेरी। मप्र के लोकनृत्य राई और बरेदी से शुरू हुआ सांस्कृतिक उत्सव, आजी लामू नृत्य (मणिपुर), ओग्गू डोलु (तेलंगाना), गोटिपुआ (ओडिशा), मयूर रास (यूपी), जबरो नृत्य (लेह एवं लद्दाख), समय दीपक नृत्य (गोवा), सिरमौरी नाटी( हिमाचल प्रदेश) के साथ आगे बढ़ता चला गया और हॉल में मौजूद हर दर्शक भारत की इस सांस्कृतिक विविधता की झांकी देखकर मंत्रमुग्ध हो गए और कार्यक्रम के बाद कई दर्शकों ने कलाकारों से मिलकर उनकी प्रशंसा की।
आज के कार्यक्रम
उन्मेष के तहत रवींद्र भवन के अलग- अलग सभागारों में भारत सहित अन्य देशों के लेखकों के सेशन सुबह 10 बजे से लेकर शाम 7 बजे तक सुने जा सकते हैं। यह आयोजन केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय अंतर्गत संगीत नाटक अकादमी और साहित्य अकादमी द्वारा संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन के सहयोग से आयोजित किया गया है। शाम 5 बजे से अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, पं.बंगाल, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, असम, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, मणिपुर के कलाकारों की प्रस्तुति को रवींद्र भवन में देख सकते हैं।
बापू, बच्ची और सेल्फी कविता
मैं यहां एक कविता सुनाई जिसमें एक छोटी से बच्ची गांधी जी के साथ सेल्फी लेने जाती है और बोलती है कि ‘बापूजी बाथरूम से निकल तैयार हो जाएंगे तो लूंगी सेल्फी‘,तो वहीं किशोर बोला, ‘वॉव, गांधीजी तुम्हारा तो है सॉलिड सिक्स पैक, तुम रेगुलर जिम जाता था शायद, नहीं तो 385 किमी दांडी यात्रा पर जा पाता कैसे’। -अंजलि बासुमेतरी, बोडो भाषी, कवयित्री
छात्रों में साहित्य की रुचि कम
मैंने 9 साल की उम्र से लिखना शुरू कर दिया था और इसमें मेरे परिवार की अहम भूमिका रही। कभी किसी ने बताया नहीं कि साहित्य एक कठिन पेशा है। मुझे लगा कि जैसे एक साहित्यकार ही पैदा हुई हूं। आईआईटी हैदराबाद में जापानी संस्कृति पढ़ा रही हूं। आईआईटी के छात्र साहित्य और भारत के ही सामान्य ज्ञान में शून्य हैं। साहित्य के लिए जापान में कई सम्मान मिल चुके हैं। -मामी यामदा, लेखिका, जापान
मेरी कविता पाठ्यक्रम का हिस्सा
एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी को सरकार का भी साथ मिल रहा है जिससे हमें अपनी बात रखने का मंच मिल रहा है। मेरी कविताओं को कुवेंपु यूनिवर्सिटी कर्नाटक ने कन्नड़ भाषा में बीए टेक्स्ट बुक का हिस्सा बनाया गया है। मैंने 71 कविताओं का संग्रह मनाडा कन्नु तैयार किया था, जिसे पढ़ने के बाद यूनिवर्सिटी में संपर्क किया और सिलेबस में शामिल किया। -चांदनी, ट्रांसजेंडर, कन्नड़ कवयित्री