पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनी, तलाशेंगे संभावनाएं
देश में ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ की कवायद शुरू
नई दिल्ली। सरकार ने एक राष्ट्र, एक चुनाव की संभावनाएं तलाशने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। सरकार द्वारा 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के एक दिन बाद यह कदम सामने आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर कई साल से जोर देते रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि कोविंद इस संबंध में विशेषज्ञों से बात करेंगे और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ विचार विमर्श करेंगे। गौरतलब है कि देश में 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ हुए थे। लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। तब इसमें बदलाव आया।
होने हैं कई राज्यों में चुनाव
नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम और राजस्थान में विस चुनाव होने वाले हैं। अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनाव होने हैं। कहा जा रहा है कि सरकार के इस कदम से कुछ राज्यों के चुनाव को आगे बढ़ाने की संभावना है। इसके साथ ही अगले साल आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होने हैं।
कई प्रैक्टिकल दिक्कतें हैं: पूर्व निर्वाचन आयुक्त
देश के पूर्व निर्वाचन आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा कि लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराना वांछनीय है और खर्च में कमी सहित इसके कई फायदे भी हैं, लेकिन इसे लागू करने के लिए कई व्यावहारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। फायदे इस अर्थ में कि इसमें चुनाव प्रचार आदि में ज्यादा समय बर्बाद नहीं होगा।
आरएसएस समर्थन में :
आरएसएस देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव के पक्ष में है। उसका मानना है कि इस महत्वपूर्ण विषय से जुड़ी चीजें व्यवस्थित होनी चाहिए, जिससे सार्वजनिक धन और देश के बहुमूल्य समय की बचत होगी। संघ का मानना है कि इससे विकास को गति मिलेगी।
एक राष्ट्र, एक चुनाव की संभावना तलाशने के लिए समिति गठित करने का केंद्र सरकार का कदम बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों से ध्यान हटाने का प्रयास है। - प्रियंका चतुर्वेदी शिवसेना (यूटीबी)
अगर लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए कानून बनाया जाता है तो हम इसका समर्थन करेंगे। - बद्रीनारायण पात्रा, बीजद नेता
विधानसभाओं की मंजूरी के बिना ऐसा संभव नहीं है। केंद्र को संविधान संशोधन की जरूरत है, यह लोकसभा और राज्यसभा में विधेयक पारित करके नहीं होगा। - कमलनाथ पूर्व मुख्यमंत्री, मप्र