दक्षिण चीन सागर के लिए बने आचार संहिता: मोदी
पूर्वी एशिया सम्मेलन में पीएम ने कहा - युद्ध नहीं संवाद एवं कूटनीति ही समाधान का एकमात्र रास्ता
जकार्ता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत का मानना है कि दक्षिण चीन सागर के लिए आचार संहिता प्रभावी होनी चाहिए और यह संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस) के अनुरूप होनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने भूराजनीतिक संघर्षों का उल्लेख करते हुए दोहराया कि आज का युग युद्ध का नहीं है और संवाद एवं कूटनीति ही संघर्षों के समाधान का एकमात्र रास्ता है। आतंकवाद, अतिवाद और भूराजनीतिक संघर्ष हम सभी के लिए बड़ी चुनौतियां हैं और वर्तमान वैश्विक परिदृश्य चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों और अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है।
सभी देशों की संप्रभुता और अखंडता जरूरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पूरी तरह से पालन अनिवार्य है और सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को मजबूत करने के लिए सभी की प्रतिबद्धता और संयुक्त प्रयास भी आवश्यक हैं। जैसा कि मैंने पहले कहा है - आज का युग युद्ध का नहीं है। समाधान का एकमात्र रास्ता संवाद और कूटनीति है। पिछले साल 16 सितंबर को उज्बेकिस्तानी शहर समरकंद में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय बैठक में मोदी ने कहा था, आज का युग युद्ध का नहीं है और रूसी नेता को यूक्रेन संघर्ष समाप्त करने के लिए प्रेरित किया। रक्षा और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन एशिया-प्रशांत क्षेत्र का प्रमुख मंच है। 2005 में गठन के बाद से, इसने पूर्वी एशिया के रणनीतिक, भू- राजनीतिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संगठन) के सदस्य देशों के अलावा शिखर सम्मेलन में भारत, चीन, जापान, कोरिया गणराज्य, आॅस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अमेरिका और रूस शामिल हैं।