एक साल से बंद पड़ा है सिविल अस्पताल का आईसीयू, मरीज परेशान

एक साल से बंद पड़ा है सिविल अस्पताल का आईसीयू, मरीज परेशान

ग्वालियर। प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग को एक करने के फैसले से निश्चित ही मरीजों को आने वाले दिनों में लाभ मिल सकता है। अभी तक दोनों विभागों के अलग-अलग होने के कारण जो विसंगतियां थीं, वह अब दूर हो जाएंगी और निश्चित ही आने वाले दिनों में मरीजों को बेहतर चिकित्सीय सुविधाएं मिल सकती हैं। खासतौर से स्वास्थ्य विभाग के अस्पतालों में डॉक्टरों सहित अन्य स्टाफ की कमी की वजह से कई सुविधाएं बंद पड़ी हुई हैं।

 इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि स्वास्थ्य विभाग के सिविल अस्पताल हजीरा में एक साल पहले 20 बेड का आईसीयू बनकर तैयार हो चुका है, लेकिन स्टाफ की कमी की वजह से यह प्रारंभ नहीं हो पाया है और मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है, लाखों रुपए की कीमत के इंस्ट्रूमेंट शोपीस बनकर रह गए हैं। हालांकि स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी दोनों विभागों के एक होने के फैसले से खुश हैं। सरकार की मंशा के हिसाब से अगर दोनों विभाग में आने वाले दिनों में तालमेल बैठ जाता है तो निश्चित स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर होंगी।

रेडियोलॉजिस्ट के छुट्टी पर जाते ही बंद हो जाती है जांच

स्वास्थ्य विभाग के अधीन आने वाले जिला अस्पताल मुरार की हालत इन दिनों काफी खस्ता है, खासतौर से रेडियोलॉजी के मामले में यहां पर केवल एक मात्र रेडियोलॉजिस्ट सालों से है, जब कभी वह छुट्टी पर चला जाता है तो अल्ट्रासाउंड की जांच बंद हो जाती है। अभी इस कर्मचारी के यहां गमी होने के कारण अस्पताल में आधा महीने तक महत्वपूर्ण जांच नहीं हुई, जिसकी वजह से मरीजों को प्राइवेट सेंटर पर पहुंचकर जांच करानी पड़ी।

स्वास्थ्य विभाग पर नहीं है, न्यूरोलॉजिस्ट, डर्मेटोलॉजिस्ट

स्वास्थ्य विभाग के पास डॉक्टर्स की कितनी कमी है, इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, स्वास्थ्य विभाग के पास संभाग भर में एक भी डर्मेटोलॉजिस्ट यानि की चर्म रोग विभाग का विशेषज्ञ नहीं है। दूसरी ओर जीआरएमसी की बात की जाए तो यहां पर प्रोफेसर के साथ ही असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर के साथ एसआर सहित अन्य स्टाफ पर्याप्त संख्या में है। ऐसा ही कुछ हाल न्यूरोलॉजी व न्यूरोसर्जरी का है स्वास्थ्य विभाग के पास इसका कोई विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है। हृदय रोग व मनोरोग के मरीजों को उपचार के लिए जेएएच के भरोसे रहना पड़ता है। जीआरएमसी से हर साल 200 नए एमबीबीएस ग्रेजुएट डॉक्टर निकलते हैं, दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग में भर्ती नहीं हो रही है।