ब्रॉडगेज:जबलपुर से नागपुर तक बनना था ग्रीन कॉरीडोर,नहीं हुआ पौधरोपण
जबलपुर। लंबे प्रयासों के बाद तैयार हुए ब्रॉडगेज का न तो यात्रियों को फायदा मिल पा रहा है और न ही यहां के स्टेशन,रेलवे ट्रैक पर ही ध्यान दिया जा रहा है। दक्षिणपूर्व सेंट्रल रेलवे बिलासपुर जोन ने इस रूट के तैयार होने पर व ट्रेनों के संचालन प्रारंभ होने पर जबलपुर से लेकर नागपुर तक के रेलवे ट्रैक को ग्रीन कॉरीडोर में तब्दील करने की घोषणा की थी जो 5 साल बाद भी घोषणा ही है,इस पर अमल के लिए कतई प्रयास नहीं हुए हैं। वायु गुणवत्ता को लेकर की जा रही सर्वत्र चिंता के चलते रेलवे ने भी ट्रैक को यात्रियों के अनुकूल बनाए जाने की जरूरत समझी और पमरे व दूपमरे ने जबलपुर से चलने वाली ट्रेनों में बॉयो टायलट लगाकर ट्रैक को गंदगी से मुक्त करवाया है। इसी दिशा में आगे ट्रैक के दोनों ओर पौधरोपण कराए जाने की योजना बनी जिसे ग्रीन कॉरीडोर का नाम दिया गया था। पौधरोपण की झलक न तो पमरे और न ही दूपमरे के रेलवे ट्रैक्स में नजर नहीं आई।
पहले चरण के 46 किमी तक में काम नहीं
ग्रीन कॉरीडोर के तहत पहले चरण में जबलपुर से सुकरी मंगेला तक के 46 किमी लंबे ट्रैक में ग्रीन कॉरीडोर बनाने का मुख्य प्लान बनाया था। इस रूट के मुख्य स्टेशन गढ़ा,गौरीघाट होते हुए सुकरी तक जाने वाले ट्रैक का जायजा लेने पर पता चला कि इस रूट पर कहीं भी ग्रीन कॉरीडोर के नाम पर पौधरोपण नहीं किया गया है,जबकि दावा किया जा रहा था कि ब्रॉडगेज लाइन बनाने के साथ ही रेलवे पहले ग्रीन कॉरीडोर बनाएगा जो कि मॉडल साबित होगा।
क्यों जरूरी है एयर क्वालिटी सुधारना
जिस क्षेत्र में एयर क्वालिटी खराब होती है उस क्षेत्र के रहवासियों को कैंसर जैसी बीमारी होने को खतरा बना रहता है इतना ही नहीं वायु प्रदूषण रेस्पिरेटरी सिस्टम को नुकसान पहुंचाने के साथ हार्ट अटैक व ब्रेन स्ट्रोक को भी बढ़ावा देता है। इन बीमारियों से बचने के लिए एयर क्वालिटी सुधारना जरूरी होता है। रेलवे के अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया प्लॉन कहां गायब हो गया पता नहीं चल पा रहा है।
ऐसे बना था प्लॉन
नागपुर रूट पर जब शुरूआती दौर में जबलपुर से सुकरी तक पैसेंजर ट्रेन चलाई गई थी,उन सभी कोच में बॉयोटायलेट लगाए गए थे। इसके बाद इस ग्रीन रूट में चलने वाली सभी ट्रेनों में बॉयोटायलेट लगाए जाने के साथ बालाघाट से गोंदिया तक ग्रीन कॉरीडोर बनाने का प्लॉन तैयार किया गया था।
क्या है ग्रीन कॉरीडोर
रेलवे के ग्रीन कॉरीडोर का मतलब यह है कि चिन्हित रेलवे रूट साफ-सुथरा और हरियाली से भरपूर हो। उस रूट पर चलने वाली सभी ट्रेनों के कोच में बॉयोटायलेट लगा हो जिससे ट्रैक पर गंदगी न गिरे। इससे ट्रैक और स्लीपर को नुकसान नहीं होता। मेंटेनेंस का खर्च भी कम हो जाता है। ट्रैक के दोनों ओर पेड़ पौधे लगे होने से पर्यावरण स्वच्छ रहेगा। वहीं ट्रैक पर काम करने वाले कर्मियों को भी स्वच्छ माहौल मिलेगा। ट्रैक की लाइफ भी दोगुनी बढ़ जाएगी।
ऐसे किसी प्लॉन की मुझे जानकारी नहीं है,स्वच्छता के लिए रेलवे ट्रैक पर लगातार काम होते हैं। इसकी जानकारी लेकर आपको बता पाऊंगा। साकेत रंजन,सीपीआरओ, दपूमरे बिलासपुर जोन।