इलाज के साथ रिसर्च में भी अव्वल भोपाल का एम्स
भोपाल। एम्स भोपाल इलाज के साथ रिसर्च में भी अव्वल है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता कि 11 साल में एम्स में रिसर्च 150 गुना बढ़ गई है। 2013 में एम्स में महज दो रिसर्च हुए थे। वहीं 2022 में 300 से ज्यादा शोध दुनिया के बड़े रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं। अलग- अलग विभागों में किए जा रहे इन रिसर्च पर अब तक 25 करोड़ से भी ज्यादा का बजट खर्च हो चुका है। रिसर्च के अलावा यहां सालभर रिसर्च पेपर पर भी काम चलता है। हर साल करीब 150 रिसर्च पेपर पब्लिश किए जाते हैं। एम्स के डीन रिसर्च डॉ. देवाशीष विश्वास ने बताया कि सालभर में करीब 150 रिसर्च पेपर पब्लिश करते हैं।
रिसर्च से होता है फायदा
एम्स के डायरेक्टर डॉ. प्रो. अजय सिंह का कहना है कि एम्स इलाज के साथ शोध संस्थान भी है। रिसर्च से ये तय होता है कि रोगियों को सर्वोत्तम उपचार कैसे किया जाए। शोध से नई दवाओं, नई तकनीक और नए उपकरणों का विकास होता है।
रिसर्च जो दुनिया में हुए प्रसिद्ध
1. सिंगल लूप वायर से जबड़े को जोड़ना : एम्स के डॉ. अंशुल राय ने दुर्घटना में टूटे जबडेÞ को सिंगल लूप वायर से जोड़ने की तकनीक का अविष्कार किया। इसे दुनिया के कई देशों में राय मॉडिफिकेशन के नाम से पढ़ाया जाता है। इसके साथ ही फाइब्रोसिस व ओरल कैंसर में सड़ चुकी हड्डी को काटने के लिए कैरीसन रोंजर (विशेष प्रकार का धागा) का निर्माण किया। पहले हर बार नई सॉ (आरी) और टाइटेनियम बर का उपयोग होता था, जो मरीजों को 30 हजार रुपए में मिलती थी।
2.संक्रमित शवों पर कोरोना का असर : दुनिया में पहली बार कोविड संक्रमित शवों पर रिसर्च किया गया। 21 कोविड शवों की अटॉप्सी के बाद खुलासा हुआ कि कोरोना वायरस ने न सिर्फ फेफड़े, बल्कि किडनी, ब्रेन, पैंक्रियाज, लिवर और हार्ट तक पहुंचकर अपना घातक असर दिखाया।
3.मृत देह के स्पर्म पर रिसर्च : मृत शरीर के स्पर्म को डोनेट कर संतानोत्पत्ति की संभावनाओं पर शोध किया जा रहा है। इससे यह पता लगाया जाएगा कि किसी युवा पुरुष की मौत के बाद में कब तक स्पर्म जिंदा रहते हैं।