राजस्थान के पारंपरिक व्यंजन बाजरे की रोटी और केर सांगरी का भोपालवासियों ने लिया स्वाद
जनजातीय संग्रहालय में विमुक्त व्यंजन और शिल्प विक्रय के लिए लगाए गए स्टॉल
राजस्थान अपनी संस्कृति, इतिहास और खान-पान के लिए जाना जाता है। यहां बनने वाले व्यंजन भी देशभर में काफी पसंद किए जाते हैं। जिनका लजीज स्वाद शनिवार को भोपालवासियों ने चखा। मौका था, विमुक्त जाति दिवस के अवसर पर आयोजित संवेग कार्यक्रम का, जिसमें विमुक्त व्यंजन एवं शिल्प विक्रय के लिए जनजातीय संग्रहालय में स्टॉल लगाए हैं। इसमें बाजरे की रोटी के साथ केर सांगरी और मिर्च का कुटा खास था। जिसे खाकर लोग अंगुलियां चाटते हुए नजर आए। इनके खाने का लुμत लोग 3 सितंबर को भी ले सकते हैं। जोधपुर सामराऊ ओसिया के सुरम नाथ कालबेलिया ने बताया कि शादी, और त्योहार में यह पकवान बनाए जाते हैं, सन 1986 में जब राजीव गांधी जैसलमेर आए थे, उनको भी यही पकवान खिलाए गए थे। जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी और बाबूलाल गौर शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय द्वारा आयोजित संवेग कार्यक्रम में भोपा गायन, कालबेलिया नृत्य और राई नृत्य की प्रस्तुति दी गई।
सात डिश के साथ सजी खाने की थाली
व्यंजन की थाली को सात डिश के साथ सजाया गया था। इसमें देशी घी के साथ चार बाजरे की रोटी, बेसन के गट्टे की सब्जी, केर सांगरी, मिर्ची का कुटा, कढ़ी, लपसी (दलिए का हलवा) और पापड़ थाली में सजाकर लोगों को दिया गया था। इस थाली की कीमत मात्र 250 रुपए थी।
हैंडमेड मालाएं बनीं आकर्षण का केंद्र
जनजातीय संग्रहालय में विमुक्त घुमंतुओं द्वारा शिल्प विक्रय के लिए लगाए गए स्टॉल में हाथों से बनीं मालाएं आकर्षण का केंद्र रहीं। कलाकारों ने बताया कि यह मालाएं कांच के मोतियों से बनार्इं गर्इं हैं। राजस्थान में विमुक्त घुमंतु महिलाएं सोने- चांदी की माला नहीं पहनती। वह कांच के मोतियों की मालाओं को पहनना पसंद करती हैं। इसके अलावा यहां स्टॉल पर हाथों से बनीं गोदड़ी भी विक्रय के लिए रखी गई थीं। यह सूती के कपड़े की होती है। इनको डोर से डोर मिलाकर बनाया जाता है।
गजब का है इनके खाने का स्वाद राजस्थान के पारंपरिक खाने का स्वाद गजब का होता है, सारी डिश बहुत स्वादिष्ट थी। खाने की कीमत बहुत कम थी और खाना बहुत लाजवाब था। -कर्नल विक्रम, विजिटर
खाने का सारा सामान साथ लेकर आए 30 किलो बाजरे का आटा, 30 किलो गेहूं का आटा, 2 किलो सांगरी, 500 ग्राम केर समेत खाने की अन्य सभी सामग्री राजस्थान से लेकर आए हैं। -सुरम नाथ कालबेलिया, जोधपुर