खेती-किसानी करते हुए सीखी भील चित्रकारी अब सोलो एग्जीबिशन से कमा रहे नाम
ट्राइबल म्यूजियम में शुरू हुई भील कलाकार दिलीप गणावा की चित्र प्रदर्शनी
चित्रकार का जीवन सरल नहीं होता। कला का हुनर भले ही पास हो, लेकिन सही कीमत न मिलने पर उसे दूसरे रोजगार के जरिए अपनी आजीविका का प्रबंध करना होता है। ऐसा ही कुछ हुआ, भील चित्रकार दिलीप गणावा के साथ, जिन्होंने प्रख्यात चित्रकार गंगूबाई के सानिध्य में लगभग 8 साल चित्रकारी के गुर सीखें और चित्रकारी में उन्हें सहयोग किया, लेकिन पारिवारिक दायित्वों के चलते वापस खेती-किसानी करने अपने गांव लौटना पड़ा। दिलीप कहते हैं, पिछले कुछ सालों में जनजातीय लोक कलाओं को लेकर लोगों की समझ बनीं और बाजार निर्मित हुआ तो वापस चित्रकारी करने लगा। फिलहाल में अपने गांव, नयागांव (झाबुआ) में रहकर भील चित्रकारी कर रहा हूं। जनजातीय संग्रहालय द्वारा प्रदेश के जनजातीय चित्रकारों को चित्र प्रदर्शनी और चित्रों की बिक्री के लिए मंच उपलब्ध कराने के लिए शलाका प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है।
चित्रों में अनुभवों व नजरिए की झलक
जनजातीय संग्रहालय में शुरू हुई दिलीप गणावा की भील चित्रों की प्रदर्शनी में उनके बनाए चित्रों को देखा व खरीदा जा सकता है। 35 वर्षीय इस कलाकार के चित्रों को एक बार देखने पर दर्शक देखते रह जाते हैं। रंगों का अद्भुत संयोजन व बिंदुओं के जरिए की गई चित्रकारी चटक रंगों के समावेश से देखते ही बनती है। चित्रों में पशु-पक्षी, पेड़-पौधे एवं अपने आस- पड़ोस के वातावरण की झलक प्रमुखता से दिखाई देती है। हालांकि यह चित्र लगभग हर चित्रकार की कूची से निकलते हैं, लेकिन इसमें सभी का अपना-अपना प्रभाव व मनोस्थिति व अपने जीवन अनुभवों की झलक परिलक्षित होती है। किसी चित्र में पेड़ों के आसपास काम करती महिलाएं, तो किसी में पक्षियों को पेड़ के समकक्ष आकार में दर्शाया गया है। खेत से गन्ने को उखाड़ते हाथी, आपस में मस्ती करते जानवरों के चित्रों को देखा जा सकता है। यह प्रदर्शनी 30 नवंबर तक दर्शक देख सकते हैं।
अपने बच्चों को करना चाहता हूं उच्च शिक्षित
तमाम अभावों से गुजरे दिलीप की कला ने समय के साथ परिपक्वता हासिल की और आज वे भारत के अलग-अलग राज्यों में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किए जाते हैं। दिलीप कहते हैं, मेरा जो संघर्ष रहा वो मेरे बच्चों को न झेलना पड़े इसलिए अपने तीनों बच्चों को उच्च शिक्षित करना चाहता हूं, साथ ही अपनी कला उन्हें सौंपने का प्रयास कर रहा हूं। कुछ वर्षों पूर्व रोजगार की तलाश में जब भोपाल आया था, तब पद्मश्री भूरीबाई के चित्रकर्म से अत्यन्त प्रेरित हुआ था और तभी चित्रकार बनने की मन में ठान ली। तब से भील चित्रकारी कर रहा हूं। जब-जब मेरे बनाए गए चित्रों की प्रदर्शनी लगती है , तब मेरा और मेरे गांव का नाम रोशन होता है। इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है।