थैला बैंक की पहल गायब गुजरात से आने वाली 2 टन पॉलीथिन प्रतिदिन खप रही
जबलपुर। अमानक पॉलीथिन से शहर को बचाने शहर में जोर-शोर से थैला बैंक की पहल तो की गई मगर जल्द ही यह गायब भी हो गई। वहीं वर्तमान स्थिति में गुजरात से आने वाली 2 टन अमानक पॉलीथिन की प्रतिदिन खपत हो रही है। कार्रवाई के नाम पर छिटपुट दुकानदारों पर कार्रवाई कर नगर निगम के जिम्मेदार औपचारिकता पूरी कर रहे हैं।
अमानक पॉलीथिन न केवल मानव जीवन के लिए घातक है बल्कि इसके कारण पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचता है। नगर निगम की कार्रवाई केवल सब्जी के ठेले वाले या छोटे दुकानदारों तक ही सीमित है। इसके स्त्रोतों पर कभी बड़ी कार्रवाई नहीं की गई। सबसे ज्यादा अमानक पॉलीथिन गुजरात से आती है,जिसमें कथित रूप से स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका है।
क्या है अमानक पॉलीथन
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अनुसार 50 माइक्रॉन के नीचे की मोटाई वाली पॉलीथिन अमानक मानी गई है। इसकी पहचान यह होती है कि उंगली से जोर लगाने पर यह फट जाती है। ऐसी पॉलीथिन का उपयोग किराना दुकान, सब्जी, फलों के ठेले, खाने के स्टॉल और अन्य दुकानों में रोजाना होता है। नगर निगम और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जिम्मे यह व्यवस्था है कि इस तरह की पॉलीथिन का उपयोग रोका जाए और कठोर कार्रवाई की जाए लेकिन यह कार्रवाई न के बराबर होती है।
गायों पर सर्वाधिक नुकसानदेह
शहर में लोग घर का बचा हुआ खाना ऐसी पॉलीथिन में पैक कर कचरे में फेंक देते हैं जिन्हें आवारा घूमने वाली गाय मय पन्नी के खा लेती हैं। यही पन्नी उनके उदर में फंसकर उनकी जान ले लेती है। इस समस्या से सैकड़ों गायों की दर्दनाक मौतें हुई हैं,मगर इसके बावजूद न तो लोग अमानक पॉलीथिन के उपयोग से बाज आ रहे हैं न ही दुकानदार।