ठंड शुरू होते ही कड़कनाथ की राजस्थान, दिल्ली व उत्तरप्रदेश से डिमांड
ग्वालियर। प्रदेश में सर्दी धीरे-धीरे बढ़ रही है और इसके साथ कड़कनाथ की मांग भी बढ़ने लगी है। रंग, खून, हड्डी काली होने के कारण इसके चिकन की तासीर गर्म होने के साथ-साथ प्रोटीन 25 फीसदी (अन्य नस्लों में 18 फीसदी) होता है। हृदय और डायबिटीज के रोगियों के लिए कड़कनाथ का चिकन फायदेमंद होता है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विवि ग्वालियर का कृषि विज्ञान केंद्र पर ग्वालियर ही नहीं बल्कि उत्तरप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली से लगभग 8 हजार कड़कनाथ के चूजे, अंडे और मुर्गा- मुर्गी की डिमांड आ चुकी है और डिमांड तीन महीने में पूरी हो सकेगी। झाबुआ, अलीराजपुर के बाद ग्वालियर में अंडे से चूजे तैयार किए जाते हैं। ग्वालियर में तीसरा कड़कनाथ का हैचरी सेंटर है।
मुर्गी के अंडे देने के बाद उसे 10 से 15 दिन तक मशीन में रखा जाता है। इसके बाद अंडे से चूजा बाहर आ जाता है, जिसे कुछ दिन के अंतराल में दो वैक्सीन लगाई जाती है। इसके बाद चूजा बिकने के लिए तैयार हो जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र में हर साल 50 हजार कड़कनाथ के मुर्गा-मुर्गी से चूजे तैयार किए जाते हैं। केंद्र वर्ष 2016 से कड़कनाथ का उत्पादन कर रहा है। यहां 200 चूजों की हैचरी बनाई गई है। केंद्र में 400 चूजे हैं, 600 मुर्गा-मुर्गी हैं, जिनसे अंडे मिलते हैं। इनके अलावा 250 से 300 मुर्गा-मुर्गी हैं, जिनसे कम अंडे मिल पा रहे हैं, उन्हें बेचा जा रहा है। शहर में हर दिन 5 से 10 मुर्गा-मुर्गी (700 रुपए मुर्गा, 600 रुपए मुर्गी) बिक रहे हैं। चूजा 90 रुपए और अंडे की कीमत 20 रुपए है।
कड़कनाथ के 8 हजार चूजों की डिमांड ग्वालियर के अलावा राजस्थान, दिल्ली, उत्तरप्रदेश से आई है, जिनकी पूर्ति तीन महीने में हो सकेगी। केंद्र से मुर्गा-मुर्गी बेचे जा रहे हैं। वैसे अंडे से चूजे तैयार किए जाते हैं, सिर्फ मरीजों को अंडा दे दिया जाता है। डॉ. आरएस कुशवाह, प्रभारी व वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र ग्वालियर