अमजद अली खान का दर्द..., ‘10 साल से संस्कृति विभाग ने अपने ही प्रदेश में प्रस्तुति देने नहीं बुलाया’
डॉ. मनोज माथुर को श्रद्धांजलि देने आए प्रख्यात सरोद वादक ने आई एम भोपाल से कहा-
घर की मुर्गी दाल बराबर होती है, इसीलिए जहां प्रतिभा जन्म लेती है, उसे वहां के लोग पहचानने में देरी कर देते हैं, जबकि बाहर के दोयम दर्जे के कलाकारों का सम्मान और सत्कार करने में वे अपनी शान समझते हैं। यूं तो दुनिया के तमाम देशों में सैकड़ों प्रस्तुतियां करने का अवसर मिल चुका है, परंतु 10 साल हो गए हैं, मप्र सरकार ने किसी कार्यक्रम में प्रस्तुति के लिए नहीं बुलाया। मप्र की धरती का पुत्र होने के चलते दिल में ये बात मुझे जोरों से चुभती है। विश्वविख्यात सरोद वादक और पद्मविभूषण उस्ताद अमजद अली खान के इन शब्दों में दर्द भी है और नाराजगी भी। उनकी संस्कृति विभाग से एक गुजारिश भी, कि उन्हें प्रदेश के किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुति देने का मौका दिया जाए। उस्ताद अमजद अली खान गुरुवार को डॉ. मनोज माथुर की शोक सभा में शामिल होने के लिए उनके निशात कॉलोनी भोपाल स्थित उनके घर आए थे। इस दौरान उन्होंने आईएम भोपाल से खास बातचीत की।
ये दूरियां क्यों बढ़ गईं मुझे समझ नहीं आता
उस्ताद अमजद अली खां बताते हैं कि हमारे प्रदेश की धरती शास्त्रीयता की विभिन्न विधाओं से भरी रही है। मैं भी सुर सम्राट तानसेन की भूमि ग्वालियर से आता हूं। एक समय प्रतिवर्ष मुझे सरकार द्वारा प्रदेश में प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया जाता था, परंतु 10 सालों से अपने लोगों के बीच किसी संगीत सभा में बैठना नहीं हुआ। ये दूरियां क्यों बढ़ गई हैं, ये मुझे समझ नहीं आता, क्योंकि हमारे लिए तो स्वर ही ईश्वर है, इसीलिए हम चाहते हैं कि मप्र के लोग स्वर से जुड़े रहें और हमारा रिश्ता मप्र से बना रहे। सामाजिक सौहार्द्र को बनाए रखने और संगीत की पवित्रता को कायम रखने के लिए यह बात हम सभी को समझना चाहिए। संगीत सभी को जोड़ता है और हमने हमेशा जुड़ने का प्रयास किया है।
संगीत किसी धर्म से संबंधित नहीं है
जल, वायु, फूल और रंगों की तरह संगीत भी किसी धर्म से संबंधित नहीं है। ये तो हमारे लिए भगवान का अमूल्य उपहार है। स्वर भी ईश्वर की आराधना का माध्यम हैं, बस स्थान के अनुसार उनका नाम परिवर्तित कर देते हैं। चर्च में जिसे हीम्स कैरोल कहते हैं, उसे मंदिर में भजन-कीर्तन और मस्जिद में अजान कहा जाता है।
मेरे पिता डॉ. माथुर को अपना बेटा मानते थे
दिवंगत डॉ. मनोज माथुर आज हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन बचपन से मेरा उनसे गहरा स्नेह रहा है। वे ग्वालियर में हमारे पिताजी उस्ताद हाफिज अली खां साहब से सितार सीखते थे और वहां के मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई किया करते थे, जिससे कम समय में हमारे पारिवारिक संबंध बन गए थे। भोपाल आने पर वे पिताजी की काफी सेवा करते थे। उनके माध्यम से कई लोगों से परिचय होता था और एक शानदार व्यक्तित्व को खो देने मेरे लिए एक बड़ी क्षति है।
हमने बनाया इंटरनेशनल ऑर्केस्ट्रा , ‘समागम’
हर दिन कुछ नया करना ही मेरे लिए संगीत है। मेरा प्रयास रहता है कि हर कॉन्सर्ट में कला रसिकों के बीच अपने संगीत का नया रूप लेकर प्रस्तुत करूं। इसी दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए हमने इंटरनेशनल ऑर्केस्ट्रा बनाया है, जिसका नाम समागम रखा है। इसमें फ्रांस, इंग्लैंड और अमेरिका सहित अलग-अलग देशों के करीब 60 म्यूजिशियंस एक साथ प्रस्तुति देते हैं। ये संगीत की दुनिया में अपनी तरह का एक नया प्रयोग है। मुझे खुशी मिलेगी की संगीत की ऐसी ही कोई सुगंध भोपाल में फैले।