बरसों से धूल खा रहीं एंबुलेंस

बरसों से धूल खा रहीं एंबुलेंस

जबलपुर। गुरुवार को दतिया जिले के इंदरगढ़ में 6 माह के मासूम ने महज इसलिए दम तोड़ दिया कि विधायक निधि से खरीदी गर्इं 2 एंबुलेंस में पेट्रोल डलवाने के पैसे नहीं थे। जिम्मेदारों ने तर्क दिया कि हम क्या करें। ऐसे ही हालात जबलपुर में भी दिख रहे हैं, यहां तो जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही चरम पर है। हैरानी की बात है कि 2021 में राज्यसभा सांसद और विधायकों ने 9 एंबुलेंस अपनी निधि से स्वास्थ्य विभाग को दी, पर आज तक किसी का भी उपयोग नहीं किया गया। ऐसा भी नहीं कि इस बात की जानकारी अधिकारियों को नहीं, लेकिन सभी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं और शायद दतिया जैसे किसी हादसे का इंतजार कर रहे हैं। मप्र में मरीजों के लिए आई एंबुलेंसों को वर्षों से सड़कों पर चलने की अनुमति ही नहीं मिल पा रही है। 9 मारुति इको वाहन माननीयों की निधि से खरीदकर शहर और आसपास के स्वास्थ्य केंद्रों को दे तो दी गर्इं, लेकिन अब तक पंजीयन न होने से कबाड़ हो रही हैं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, प्रत्येक वाहन की कीमत उस समय 5 लाख के आस-पास थी।

मोटरयान अधिनियम बना पेंच

मोटर यान अधिनियम 1988 के मुताबिक, यदि गाड़ी एंबुलेंस के उद्देश्य से खरीदी जाती है तो कंपनी को उसकी जानकारी देनी होती है। यदि निजी वाहन कंपनी में दर्ज हो गया है, तो उसे एंबुलेंस के रूप में नहीं चलाया जा सकता है।

पत्राचार करने का दावा

सीएमएचओ संजय मिश्रा का कहना है कि पूर्व में हमने आरटीओ संतोष पाल से पत्राचार किया है। वर्तमान आरटीओ जितेंद्र रघुवंशी को भी जानकारी दे चुके हैं, पर कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया गया। आरटीओ का दावा है कि आज तक उनसे इस बारे में कोई बात ही नहीं हुई। बहरहाल, दोनों में कौन सच बोल रहा और कौन झूठ, ये वे ही जानें। लेकिन, दो विभागों की बेरूखी से मरीजों को एंबुलेंस की सुविधा से वंचित होना पड़ रहा है।