बेटियों को बचाने के साथ ही पढ़ाकर बनाना है आत्मनिर्भर: धर्म गुरु

बेटियों को बचाने के साथ ही पढ़ाकर बनाना है आत्मनिर्भर: धर्म गुरु

ग्वालियर स्वास्थ्य विभाग द्वारा शिशु लिंग अनुपात को लेकर बुधवार को पहली बार अंचल भर के धर्म गुरुओं का सम्मेलन आयोजित किया गया है। इस सम्मेलन में विभिन्न समुदाय के धर्मगुरु एक स्वर में बोलते नजर आए कि सभी को मिलकर बेटियों को ना केवल बचाना है बल्कि उन्हें पढ़ा लिखाकर आत्मनिर्भर भी बनाना है, जिससे वह किसी पर बोझ न रहें। आज बेटियां हर क्षेत्र में नाम कमा रही हैं और बेटियों को बचाने के लिए हर समुदाय अब एकजुट होकर प्रयास करेगा। ग्वालियर जिले की बात की जाए तो 2011 के सर्वे अनुसार जिले ग्वालियर में लिंगानुपात 862 प्रति 1000 था एवं शिशु लिंगानुपात 840 प्रति 1000 था जो कि भारत एवं मध्य प्रदेश के आंकड़े हैं उनमें सबसे कम है। जिसमे सुधार के लिए मध्य प्रदेश सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ महिला एवं बाल विकास विभाग के द्वारा कई कार्यक्रम पृथक एवं संयुक्त रूप से चलाए जा रहे हैं।

करीब दो घंटे तक चले इस सम्मेलन में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ग्वालियर डॉ. आरके राजौरिया ने बताया कि ग्वालियर जिले में बेटा-बेटियों के अंतर को कम करने के लिए यह प्रयास किया गया है। यही नहीं पीसीपीएनडीटी सलाहकार समिति की सदस्य डॉक्टर बिंदु सिंघल ने बैठक में उपस्थित विभिन्न समुदाय के धर्म गुरुओं को पावर पाइंट प्रजेंटेशन के माध्यम से जानकारी दी, साथ ही स्वास्थ्य विभाग के अभियान के बारे में जानकारी दी। महिला एवं बाल विकास अधिकारी राहुल पाठक ने बताया कि सभी समुदाय के लोगों के अपने-अपने धर्मगुरु होते हैं, जिनका उनके जीवन में विशेष महत्व एवं स्थान होता है उनके द्वारा जो भी संदेश दिया जाता है वह बहुत अधिक प्रभावकारी होता है।

धर्मगुरुओं को किया सम्मानित

स्वास्थ्य विभाग के इस आयोजन में विभिन्न समुदाय से आए धर्मगुरुओं का शॉल, श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया। इसके साथ ही तय हुआ कि आने वाले दिनों में जल्द इसको लेकर अगली बैठक होगी। आयोजकों ने संत कृपाल सिंह, शहरकाजी अब्दुल अजीज कादरी, देवनारायण धाम सिरसा घाटीगांव के शीतल दास महाराज, गिरगांव मातादेव मंदिर से आये महंत राम चित्र गुर्जर, ब्रह्मा कुमारी, गायत्री परिवार सहित विभिन्न समुदाय के धर्मगुरुओं को सम्मानित किया गया है।

किसने क्या कहा

पुराने समय की जो मानसिकता थी कि लड़के ही कुल को आगे बढ़ाते हैं, मृत्यु के बाद उनके द्वारा ही दाह संस्कार करने पर मोक्ष की प्राप्ति होगी, इस सोच के कारण ही लड़कियों को पैदा होने से पहले ही गर्भ में मार दिया जाता था,किंतु बदलते वक्त के साथ ही लोगों की सोच में बदलाव आया है। ब्रह्माकुमारी से आई हुई दीदी ज्योति

वर्तमान में लड़कियां लड़कों के बराबर हैं, चाहे चिकित्सा का क्षेत्र हो, विज्ञान का या प्रशासनिक सेवा हर क्षेत्र में बेटियां बराबरी से कार्य कर रही हैं। संत कृपालसिंह,धर्मगुरु

यदि हर कोई बेटों की ही चाह करेंगे तो फिर प्रकृति का संतुलन कैसे रहेगा, इसलिए बेटे के साथ बेटी के महत्व को भी समाज को समझना होगा और बेटा और बेटी के अंतर को समाप्त करना होगा। -अब्दुल अजीज कादरी,शहरकाजी