2010-11 में विपश्यना ज्वॉइन करने के बाद मेरी मुलाकात मुझ से हुई

हिंदी भवन में आयोजित किताब उत्सव कार्यक्रम में शामिल होने आए अभिनेता व लेखक पीयूष मिश्रा

2010-11 में विपश्यना ज्वॉइन करने के बाद मेरी मुलाकात मुझ से हुई

साल 2010-11 में विपश्यना ज्वॉइन करने के बाद मुझे ऐसा ही लगा कि मेरी मुलाकात मुझसे हुई, उस वक्त मैंने वहां अपने किए गए सभी कृत्यों को बताकर मन में काफी हल्का महसूस किया, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने आप के बारे में बताना पसंद नहीं करता, लेकिन यदि आप ऐसा करते हो तो आप भीतर से काफी रिलैक्स महसूस करते हो। यह बात अभिनेता व लेखक पीयूष मिश्रा ने आईएम भोपाल से खास बातचीत के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि कोविड के दौरान जिन लोगों का मानसिक संबल खो गया था, उनको प्यार से बात करके, कई चीजों को समझाकर मानसिक शांति का अनुभव कराया और यह एक प्रकार की मेंटल थेरेपी ही है, मेरे पास जो भी बंदा समस्या लेकर आया मैंने अपनी तरफ से उसका समाधान करने की पूरी कोशिश की।

मैं एक पेंटर हूं स्कल्पचर भी बनाता हूं

पीयूष ने बताया कि वह एक पेंटर हैं, स्कल्पचर भी बनाते हैं, अब उनकी पुस्तक ‘आपकी क्या औकात है’ जो उनकी ऑटो बायोग्राफी है। पुस्तक में वह खुद से ही सवाल कर रहे हैं कि मेरी औकात क्या है, मैं कितना बड़ा या कितना छोटा हूं। बस मैं जैसा हूं, वही मैंने इस पुस्तक में लिख दिया है और हो सकता है कि इस पर एक फिल्म भी बन जाए।

मेरे पास बहुत समय है, मैं ध्यान में दो-तीन घंटे देता हूं

उन्होंने कहा कि मुझे समझ में नहीं आता कि इंडस्ट्री के लोग ऐसा कैसे कह देते हैं कि उनके पास टाइम नहीं है, क्योंकि मेरे पास तो बहुत समय रहता है, मैं ध्यान में ही करीब दो-तीन घंटे देता हूं, इसके अलावा अपने बच्चों व बीवी से बात करना, अपने डॉग के साथ खेलना भी पसंद करता हूं, तो बाकी इंडस्ट्री के लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि उनके पास वक्त नहीं है यह मेरे समझ से परे हैं।

कम्युनिस्टों ने मेरी जिंदगी के 20 साल बर्बाद कर दिए

पीयूष मिश्रा ने कहा कि कम्युनिस्टों ने मेरी जिंदगी के 20 साल बर्बाद कर दिए। फिल्मी दुनिया में आने से पहले मैंने अपने जीवन के 20 साल कम्युनिस्टों के बीच बेकार कर दिया। पीयूष ने कहा कि मैं काफी इमोशनल बंदा हूं, अपने दोस्तों को मना नहीं कर पाया और इन चक्करों में फंस गया, कम्युनिस्ट नेता ज्योति बसु मेरे पसंदीदा रहे है, लेकिन अब मोदी सबसे उम्दा नेता है, कम्युनिस्टों के चंगुल से छूटकर मैंने पैसा कमाने के बारे में सोचा।