रानी कमलापति महल के बाद अब रायसेन के किले में देख सकेंगे मध्य भारत के किलों की कहानी

रानी कमलापति महल के बाद अब रायसेन के किले में देख सकेंगे मध्य भारत के किलों की कहानी

भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा विश्व धरोहर सप्ताह के तहत मध्य भारत के दुर्ग पर आधारित छायाचित्र प्रदर्शनी का रानी कमलापति महल में आयोजन किया गया। भोपाल में इस एक दिवसीय प्रदर्शनी के आयोजन के बाद इसे रायसेन के किले में 20 नवंबर को पर्यटक देख सकेंगे। रविवार को इस प्रदर्शनी का उद्घाटन भोपाल संभाग के डीआरएम देवाशीष त्रिपाठी ने किया। इस अवसर मध्य क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. भुवन विक्रम, अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. मनोज कुमार कुर्मी, प्रो. शीतल शर्मा एवं डॉ. विक्रम सहायक मौजूद रहे। रानी कमलापति महल के प्रभारी विजय शर्मा ने बताया कि छायाचित्र प्रदर्शनी लगाने का उद्देश्य यह है कि नागरिक स्मारकों के प्रति जागरूक हों, इसलिए यह प्रदर्शनी प्रदेश के छह जिलों में प्रदर्शित की जाएगी। इस प्रदर्शनी के माध्यम से मध्य भारत के किलों का इतिहास और इनकी गौराविंत करने वाली कहानी से पर्यटक परिचित हो सकेंगे साथ ही इन धरोहरों के संरक्षण को लेकर किए जा रहे कार्यों को जान सकेंगे।

यहकिला बालाघाट से लगभग 61 किमी दूर राजेगांव-किरणपुर लांजी रोड पर स्थित है। यह एक खंदक से घिरा हुआ खंडहर किला है। इसमें किलेबंदी की दीवार और ईंटों के बुर्ज हैं। जैसा कि 1114 ई. के बिलासपुर के एक शिलालेख में लिखा है। लांजी के शासक रतनपुर के कल्चुरी राजाओं के सामंत थे। लांजी के एक अन्य शिलालेख में एक यादव प्रमुख रामनायक का उल्लेख है, लांजी पर शुरू में कुछ राजपूतों का शासन था जो बाद में गोंडों के अधीन हो गया था। इस किले के आसपास काफी हरियाली है और मंदिर भी देखे जा सकते हैं।

इन जिलों में प्रदर्शित की जाएगी प्रदर्शनी

यह चलित प्रदर्शनी 20 नवंबर को रायसेन किले में, 21 नवंबर को ग्वालियर किले में, 22 नवंबर को अशोक नगर स्थित चंदेरी किले में लगाई जाएगी। 23 नवंबर को विदिशा स्थित उदयगिरि गुफा में, 24 नवंबर को धार स्थित रॉयल पैलेस में और अंतिम दिवस 25 नवंबर को बौद्ध स्तूप सांची में लगेगी।

ऐतिहासिक रूप से रतनपुर की स्थापना रतनपुर के कलचुरी घराने के संस्थापक रत्नदेव ने की थी, जो सदियों तक उनकी राजधानी बनी रही। मंदिरों जैसी मध्ययुगीन संरचनाओं के खंडहर, किले की दीवार सहित महल, उद्यान इस स्थल की भव्यता को बयां कर रहे हैं। किले से मिले एक शिलालेख में 1149 ई. में किले के निर्माण का उल्लेख है और इसकी शुरुआत शिव के आह्वान से होती है।

दमोह जिले की हटा तहसील से यह लगभग 19 किमी दूर स्थित किला है। इस खंडहर किले में एक ग्रीष्मकालीन घर है, जिसे पहले चरखारी के राजाओं द्वारा निवास के रूप में इस्तेमाल किया जाता था, जिनके पास 1860 तक गांव था। माड़ियाडोह गोंड राजा संग्राम शाह के अधीन 360 गांवों वाले एक उप-मंडल का मुख्यालय था। यहां राजा छत्रसाल के भतीजे जगत सिंह के बीच भीषण युद्ध बहलाल खान गांव में हुआ था।