3 साल की रिसर्च, ढाई महीने स्क्रिप्ट पर काम के बाद तैयार हुआ नाटक आदि शंकराचार्य
कर्मकांड के विद्वान मंडन मिश्र एवं ‘अद्वैत’ विचार को विश्व भर में पहुंचाने वाले आदिशंकराचार्य के बीच करीब 15 मिनट तक शास्त्रार्थ हुआ। कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला रविवार को एलबीटी सभागार में। जहां रंगशीर्ष संस्था पहली बार नाटक ‘आदि शंकराचार्य’ का मंचन किया गया। इस नाटक का लेखन सतीश दवे और संजय मेहता ने एवं निर्देशन संजय मेहता ने किया। 1.15 मिनट की इस प्रस्तुति में शंकराचार्य की संपूर्ण जीवन यात्रा को दिखाया गया।
ओंकारेश्वर में गुरु गोविंदपादजी के साथ प्रसंग
नाटक की शुरुआत आदि शंकराचार्य के जन्म से होती है। शंकर जब 4 वर्ष के होते हैं तब उनके पिता का स्वर्गवास हो जाता है। माता आर्यम्बा शंकर का प्रवेश माधवाचार्यजी के गुरुकुल में करवाती हैं। यहां से 3 वर्ष की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे सन्यास लेते हैं और ओंकारेश्वर में गुरु गोविंदपादजी के आश्रम पहुंचते हैं। वे उन्हें शंकराचार्य की उपाधि प्रदान कर काशी जाने को कहते हैं। उनकी भेंट कुमारिल भट्ट से होती है, वह शंकराचार्य जी को मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ करने को कहते हैं। आदि शंकराचार्य माहिष्मती पहुंचकर मंडल मिश्र एवं उभय भारती से शास्त्रार्थ कर विजय प्राप्त करते हैं और फिर चारों दिशाओं में मठ स्थापित करते हैं।
आदि शंकराचार्य की 4 कविताओं को किया शामिल
संजय मेहता कहते हैं कि ढाई महीने स्क्रिप्ट पर काम किया। इसक ेलिए तीन साल तक रिसर्च की। इस दौरान आदि शंकराचार्य से संबंधित कई पुस्तक पढ़ी। जिसके बाद 2 महीने तक नाटक की रिहर्सल की। नाटक में आदि शंकराचार्य की 4 कविताओं को लिया गया है। साथ ही नाटक को कंटेम्पररी फार्म में तैयार किया है।