पारंपरिक हाथ घट्टी को झाबुआ के युवक ने बनाया ऑटोमेटिक

पारंपरिक हाथ घट्टी को झाबुआ के युवक ने बनाया ऑटोमेटिक

इंदौर। हाथ से चलाई जाने वाली पारंपरिक घट्टी को झाबुआ के पलासड़ी गांव के विजेंद्र अमलियार नामक युवक ने नवाचार कर बिजली से चलाकर ऑटोमेटिक बना दिया। इस मशीन में अब बिना हाथ से घुमाए अनाज देशी तरीके से घट्टी से पीसा जा रहा है। वे पिछले 8 वर्षों से संस्था शिवगंगा से जुड़कर किसानों के बीच कार्य कर रहे हैं। विजेंद्र ने बताया कि आदिवासी बाहुल्य इलाके में रोजगार के लिए पूरा परिवार पलायन करता है। उनकी कोशिश है कि गांव में रोजगार के अवसर प्रदान किया जाए, ताकि पलायन को कम किया जा सकें। इसी उद्देश्य को लेकर यह इलेक्ट्रिकल घट्टी बनाई है। इससे किसान उद्यमी व आत्मनिर्भर बनता जा रहा है। झाबुआ जिले के चार गांवों में दस-दस महिलाओं के समूह अपने घर पर घट्टी से बनी दालों की पैकेजिंग कर मार्केट में उचित दामों पर बेच रहे हैं।

घट्टी में पारंपरिक पत्थर का उपयोग- इस घट्टी में पारंपरिक पत्थर का उपयोग किया जा रहा है। पहले इस घट्टी से केवल गेहूं पीसे जाते थे, लेकिन अब दाल के साथ दलिया भी तैयार किया जा रहा है। यह सिंगल फेस पर चल जाती है। घट्टी से एक घंटे में चार किलो आटा, 60 किलो दाल और 50 किलो दलिया तैयार किया जा सकता है।

कई बीमारियों से बचाता है घट्टी का आटा

सामान्य चक्की में लगने वाले पत्थर को केमिकल डालकर उसे ठोस बनाया जाता है। साथ ही 1425 हॉर्स पॉवर पर चलती है, जिसके कारण आटा जल जाता है। साथ ही यह काफी गर्म हो जाता है, जिसके चलते इसमें न्यूटीशियन और प्रोटीन दोनों खत्म हो जाते हैं, जिसके कारण किडनी और कैंसर जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है, जबकि पारंपरिक इलेक्ट्रिकल हाथ घट्टी सिंगल हॉर्स पॉवर पर चलती है। साथ ही आटा भी ठंडा रहता है। साथ ही न्यूट्रीशियन और प्रोटीन, मिनरल्स भी खत्म नहीं होता है तथा बीमारियों से भी बचता है।