मंत्रिमंडल का बनेगा नया फॉर्मूला, सभी लोकसभा क्षेत्रों से मंत्री बनाने पर मंथन
नई टीम में संतुलन को लेकर फरर और भाजपा हाईकमान की कवायद
भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ पांचवी बार सत्ता में लौटी भाजपा में अभी नए मुख्यमंत्री के नाम को लेकर भले ही मंथन का दौर जारी है। लेकिन मंत्रिमंडल के स्वरूप से लेकर अन्य सियासी नियुक्तियों के लिए रोड-मैप पर निर्णायक चर्चा हो चुकी है। प्रदेश में अधिकतम 35 मंत्री बनाने की लिमिट है। 163 सीटें जीतकर सत्ता में लौटी भाजपा की नई सरकार में इस बार सभी अंचलों को समुचित प्रतिनिधित्व देने पर फोकस है। मौजूदा मंत्रिमंडल में कई क्षेत्र खाली रह गए थे। संतुलन के लिए नए फॉमूर्ले की चर्चा है। सूत्रों के अनुसार भाजपा हाईकमान ने मंत्रिमंडल में एकाध अपवाद छोड़ 29 लोकसभा क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने की तैयारी की है। इसी के तहत में सभी समीकरण भी एडजस्ट किए जाएंगे। बचे हुए 5-6 मंत्रियों में सियासी, जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने के अलावा प्रबल दावेदार और जरूरी कैटेगरी के मंत्री भी शामिल किए जाएंगे।
मंत्रिमंडल में रहा ग्वालियर, गुना और भिंड का दबदबा
सीएम शिवराज सिंह चौहान के वर्तमान मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय और जातीय संतुलन नहीं बन पाया था। मार्च 2020 में सिंधिया गुट की मदद से बनी सरकार में गुना, ग्वालियर और भिंड लोकसभा क्षेत्र का दबदबा रहा। इन क्षेत्रों को तीन-तीन कद्दावर मंत्री मिले जबकि कुछ क्षेत्र खाली रहे एवं कहीं एक ही मंत्री मिला। तीन महीने पहले हुए विस्तार में पहली बार रीवा लोकसभा सीट को प्रतिनिधित्व मिल पाया। इस दौरान टीकमगढ़ और बालाघाट क्षेत्र को एक-एक मंत्री और मिल गया था।
मुरैना, सीधी, मंडला और जबलपुर जैसे क्षेत्र खाली
जिलों के हिसाब से क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का यह औसत बदल भी जाता है। बुंदेलखंड अंचल से मौजूदा मंत्रिमंडल में पांच मंत्री हैं जबकि लोस क्षेत्र के हिसाब से इनके क्षेत्र खजुराहो, दमोह, टीकमगढ़, सागर में बंटे हुए हैं। मंत्रिमंडल में मुरैना, सीधी, मंडला, जबलपुर, राजगढ़ और रतलाम और खंडवा लोकसभा क्षेत्र की विधानसभाओं से कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं था। हालांकि इसके और भी कई कारण हैं। छिंदवाड़ा भी खाली ही रहा। इस बार भी यहां से सातों विधानसभा पर कांग्रेस के प्रत्याशी ही जीते हैं।
आरएसएस और पार्टी हाईकमान कर रहा विचार
भाजपा एवं आरएसएस के उच्चस्तरीय सूत्रों का कहना है कि इस फॉमूर्ले पर संघ की सहमति भी है। मुख्यमंत्री के नाम का फैसला होने के बाद इस बात की संभावना है कि नए मंत्रिमंडल में इस फामूर्ले पर अमल किया जाएगा। बताया जाता है कि पार्टी हाईकमान ने क्षेत्रीय संतुलन को साधने के लिए यह रास्ता निकाला है। हालांकि अपवाद स्वरूप छिंदवाड़ा लोकसभा की सातों सीटों पर कांग्रेस ही काबिज हुई है।
स्वयंसेवकों ने 100 दिन पहले संभाला मोर्चा
उल्लेखनीय है कि मप्र में मिशन 23 को फतह करने में इस बार संघ की भी प्रमुख भूमिका रही है। यह पहला मौका था जब संघ ने विधानसभा चुनाव के लिए सभी 230 सीटों पर अपने 75 हजार से अधिक स्वयंसेवकों को 100 दिन पहले भेज दिया था। इन्होंने खामोशी के साथ हर सीट पर मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए सवा चार करोड़ लोगो से संपर्क किया। खासतौर पर मतदान न करने वाले लोगों को बूथ तक पहुंचाया।