50 साल पुरानी जर्जर पाइप लाइनें, नालियों में बह रहा 40 फीसदी जल
जबलपुर। शहर में होने वाली कुल जलापूर्ति का 40 फीसदी पानी नालियों की गंदगी लेकर नर्मदा में समा रहा है। जल प्रबंधन की खामी से ऐसा हो रहा है,इसमें बराबर की दोषी आम जनता भी है जो नलों को बहते हुए छोड़ देती है। ऐसे में जिम्मेदारों का चेतना बेहद जरूरी है। शहर में प्रतिदिन 335 एमएलडी पेयजल की आपूर्ति 5 जलशोधन संयंत्रों के द्वारा की जाती है। इनमें ललपुर के दो संयंत्रों से 92 एमएलडी,रमनगरा संयंत्र से 120 एमएलडी, रांझी जलशोधन संयंत्र से 45 एमएलडी,खंदारी भोंगाद्वार से 25 एमएलडी,उमरिया नहर से 40 एमएलडी व शेष हाईडेंट के माध्यम से जलापूर्ति की जाती है।
मंहगा है जलशोधन
नर्मदा व परियट,खंदारी से लिया जाने वाला पानी पीने योग्य नहीं होता,इसे शुद्ध करने में नगर निगम को जलशोधन संयंत्रों में केमिकल्स,चूना इत्यादि का उपयोग कर इसे शोधित किया जाता है। इसमें भारी भरकम राशि खर्च होती है। नगर निगम जल वितरण व्यवस्था पर हर साल करीब 100 करोड़ रुपए खर्च करता है। हालाकि जलशुल्क के रूप में उसे 30 से 40 करोड़ रुपए ही मिल पाते हैं।
ऐसे व्यर्थ जाता है पानी
शहर के ज्यादातर हिस्से की पेयजल सप्लाई लाइनें 40 साल से भी पुरानी हैं। जगह-जगह लीकेज,नालियों से गुजरती पाइप लाइनों से होता है। पानी की कीमत न पहचानने वाले नागरिक नलों को जरूरत का पानी भरने के बाद खुला छोड़ देते हैं। लोग गार्डन की सिंचाई,गाड़ियो की धुलाई इसी पानी से करते हैं। इसके अलावा घरों में निस्तार मेंउपयोग होने वाला पानी भी नालियों से बहकर बड़े नालों और इनके माध्यम से नर्मदा तक पहुंचता है।
ऐसा है पानी का गणित
शहर की आबादी 12 लाख को मानक मानते हुए प्रति व्यक्ति 100 लीटर पानी दिया जाता है। वर्तमान में नगर निगम के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 335 एमएलडी पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। लीकेज,जल के दुरूपयोग के कारण 150 एमएलडी पेयजल नालियों में जा रहा है जो कि ओमती,मोती नाला और करौंदा नाले के जरिये खंदारी नाले में जाता है जो हिरन नदी में मिलता है। हिरन से प्रदूषण लेकर यह पानी नर्मदा में मिलता है।
और यहां बूंद-बूंद को तरस रहे लोग
शहर के कई हिस्से आज भी ऐसे हैं जहां पर नर्मदा जल पहुंचा ही नहीं है। बोरिंग के पानी के भरोसे लोग गुजारा करते हैं। अभी भी ऊंचाई पर बसे कई क्षेत्रों में नगर निगम टैंकर भेजकर जलापूर्ति करता है। तिलहरी में विस्थापितों की बस्ती में 12सौ परिवार बसे हैं जो आए दिन पानी को लेकर धरना-प्रदर्शन करते हैं। शहर के घमापुर, कांचघर, शीतलामाई, अधारताल, रामनगर आदि जगहों पर गर्मी की दस्तक से ही जल संकट शुरू हो जाता है।