न्याय दिलाने में कर्नाटक समेत दक्षिण भारत के 4 राज्य टॉप 5 में
नई दिल्ली। न्याय तक पहुंच प्रदान करने वाले राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सूची में कर्नाटक पहले नंबर पर है। इसके अलावा दक्षिण भारत के 3 राज्य तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश टॉप पांच में शामिल हैं। टॉप पांच में चौथे नंबर पर गुजरात है। यह जानकारी मंगलवार को इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 द्वारा जारी अपने ताजे आंकड़े में दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, एक करोड़ से कम आबादी वाले सात छोटे राज्यों की सूची में सिक्किम अव्वल है। अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा दूसरे और तीसरे पायदान पर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि न्याय प्रणाली में प्रमुख पदों पर 10 में से एक महिला है। जबकि पुलिस बल में महिलाओं की कुल हिस्सेदारी लगभग 11.75 प्रतिशत है। अधिकारी रैंक में यह अभी भी 8 प्रतिशत से कम है।
हाईकोर्ट में 30% पद रिक्त
रिपोर्ट में दावा है कि 140 करोड़ लोगों के लिए, भारत में लगभग 20,076 जज हैं। 22 प्रतिशत स्वीकृत पद खाली हैं। हाईकोर्ट्स में 30 प्रतिशत पद रिक्त हैं। दिल्ली और चंडीगढ़ को छोड़कर, कोई भी राज्य न्यायपालिका पर अपने कुल वार्षिक खर्च का एक प्रतिशत से अधिक खर्च नहीं करते। दिसंबर 2022 तक, देश में प्रत्येक 10 लाख लोगों के लिए 19 जज थे और 4.8 करोड़ मामले बैकलॉग थे। 1987 की शुरुआत में विधि आयोग ने सुझाव दिया था कि एक दशक बाद प्रत्येक 10 लाख लोगों के लिए 50 जज होने चाहिए। आईजेआर में न्यायपालिका को रैंक किया जाता है।
एससी, एसटी, ओबीसी कोटा पूरा करने में भी पीछे
रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने पुलिस अधिकारियों और कांस्टेबुलरी दोनों के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग पदों के लिए लगातार अपने कोटे को पूरा किया है। न्यायपालिका में, अधीनस्थ/जिला अदालत स्तर पर, किसी भी राज्य ने तीनों कोटा पूरा नहीं किया। केवल गुजरात और छत्तीसगढ़ ने अपने-अपने एससी कोटे को पूरा किया। अरुणाचल प्रदेश, तेलंगाना और उत्तराखंड ने अपने एसटी कोटे को पूरा किया है। केरल, सिक्किम, आंध्र प्रदेश महाराष्ट्र, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना ने ओबीसी कोटा पूरा किया है।
पुलिस में केवल 11.75% ही महिलाएं कार्यरत
रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस में केवल 11.75 प्रतिशत महिलाएं ही कार्यरत हैं। जबकि पिछले एक दशक में उनकी संख्या दोगुनी हुई है। लगभग 29 प्रतिशत अधिकारी पद खाली हैं। पुलिस का जनसंख्या अनुपात 152.8 प्रति लाख है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय मानक 222 है। जेलों में 130 प्रतिशत से अधिक कैदी हैं और दो तिहाई से अधिक कैदी (77.1 प्रतिशत) जांच या मुकदमे के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं।
जेल में 43 रु. प्रति कैदी खर्च, आंध्र में सबसे ज्यादा
रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर जेलों में प्रति व्यक्ति खर्च 43 रुपए है। राष्ट्रीय स्तर पर, प्रति कैदी वार्षिक औसत खर्च 43,062 रुपए से घटकर 38,028 रुपए हो गया है। आंध्र प्रदेश में एक कैदी पर सबसे अधिक वार्षिक खर्च 2,11,157 रुपए दर्ज किया गया है। न्यायपालिका प्रति व्यक्ति खर्च 146 रुपए है। पुलिस पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति खर्च 1151 रुपए है।