मध्यप्रदेश में साढ़े चार साल में सामूहिक आत्महत्या के 36 मामले, इनमें 44 बच्चों सहित 104 लोगों ने गंवाई जान
वर्ल्ड सुसाइड प्रीवेंशन-डेपर विशेष
भोपाल। दुनियाभर में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने और लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 10 सितंबर को वर्ल्ड सुसाइड प्रीवेंशन डे मनाया जाता है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा इस साल जारी 2022 के डाटा के अनुसार, एक साल में देश में 1.64 लाख से अधिक लोगों ने आत्महत्या की। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 14,965 मामलों के साथ आत्महत्या के मामले में मप्र तीसरे स्थान पर है। अब तक आर्इं विभिन्न रिसर्च और एक्सपर्ट के मुताबिक, कोरोना के बाद आत्महत्या के केस तेजी से बढ़े हैं। बीते चार सालों में सामूहिक आत्महत्या के मामलों में इजाफा हुआ है। अकेले मप्र में अब तक सामूहिक आत्महत्या के 36 मामले सामने आए हैं।
आर्थिक स्थिति सबसे बड़ा कारण :
13 मार्च 2023 को एक कांग्रेस विधायक के सवाल के जवाब में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने विधानसभा में बताया था कि मप्र में जनवरी 2018 से दिसंबर 2022 तक 4 साल में 32 परिवारों ने सामूहिक खुदकुशी की थी। इसमें 20 पुरुष, 32 महिलाएं व 39 बच्चे सहित 91 लोग शामिल हैं। वहीं 2023 में अब तक ऐसे चार मामले सामने आए हैं। इनमें 4 पुरुष, 4 महिला और 5 बच्चों सहित 13 लोगों ने जान दे दी। मप्र में सामूहिक आत्महत्या के पीछे कारण आर्थिक तंगी, पारिवारिक समस्या, कर्ज और बीमारी के रूप में सामने आया है।
केस-1 भोपाल में बीते साल 24 नवंबर को सूदखोरों से परेशान आॅटो पार्ट्स व्यवसायी संजीव जोशी (47) सहित परिवार के पांच सदस्यों ने सामूहिक रूप से जहर पी लिया। आनंद नगर निवासी परिवार के पांचों सदस्यों की पांच दिनों में मृत्यु हो गई।
केस-2 इंदौर में बीते साल 23 अगस्त को निजी दूरसंचार कंपनी में कार्यरत अमित यादव (34) ने पत्नी और दो मासूम बच्चों को जहर देकर फांसी लगा ली। बच्ची को कोविड होने पर इलाज के लिए उसने कई कंपनियों से एप के माध्यम से कर्ज लिया हुआ था।
मास सुसाइड में पहले एक व्यक्ति को आत्महत्या का विचार आता है। वह धीरे-धीरे बाकी परिवार को तैयार करता है। इन केसेस में जरूरी है कि व्यक्ति यह खयाल आने पर अपनी कंपनी, परिवार, दोस्त से अपनी परेशानी साझा करे। सोशल मीडिया भी बात रखने का बेस्ट तरीका है। लेकिन लोग इस स्थिति में किसी से हेल्प लेने के लिए अवेयर नहीं है। यही वजह है कि सुसाइड की घटनाएं लगातार बढ़ती नजर आ रही हैं। - दीप्ति सिंघल, मनोवैज्ञानिक