शहर में 19 बावलियां, सब बदहाल, 600 साल पुरानी धरोहर संभालने में कोताही
जबलपुर । शहर में विभिन्न क्षेत्रों में 19 बावलियां अभी भी बची हुई हैं। ये 600 साल पुरानी तक बताई जाती हैं। गोंड़कालीन निर्माण काल का अद्भुत नमूना हैं,इन्हें सहेजने की जरूरत है। नगर निगम इस बारे में काम भी करता है। कई बावलियों को साफ करवाकर यहां जाली लगाई गईं मगर लोगों में जागरूकता की कमी से इनमें फिर कचरे का अंबार लग चुका है। नगर निगम ने 7 साल पहले उजारपुरवा सहित कई क्षेत्रों की बावली की अच्छी तरह से सफाई करवाकर यहां पर सौंदर्यीकरण का काम करवाया था। यहां के रहवासियों में जल स्त्रोतों के प्रति कम जागरूकता के चलते यहां पर एक बार फिर हालात खराब हो गए हैं।
बावली कचरे का ढेर बन चुकी है। शहर जलस्त्रोतों की नजर में खासा समृद्ध है। यहां कभी 52 ताल तलैयां,21 बावली और हजारों की संख्या में कुएं हुआ करते थे। अब इनकी गिनती चौथाई तक पहुंच चुकी है। कुछ बावली बची तो हैं मगर ये कचरे के ढेर से पूरी जा रही हैं। ऐसी ही एक बावली उजारपुरवा में है जो 600 साल पुरानी बताई जाती है। इस बावली को संज्ञान में लेकर ही नगर निगम ने इसकी तलीझार सफाई करवाई थी और यहां पर बावली को सुरक्षित करने दीवार,लोहे की जाली इत्यादि भी लगाई थीं। यहां के लोगों ने कुछ दिन तो इसे साफ रखा मगर फिर इसमें कचरा फेका जाने लगा। वर्तमान में यह बावली एक बार फिर दम तोड़ती नजर आ रही है।
शराबियों असामाजिक तत्वों का अड्डा
उजारपुरवा की बावली का मुख्य द्वार बनवाया गया है जिसे देखकर अच्छा लगता है और लगता है कि बावली को सहेजने के लिए प्रयास हुआ है मगर अंदर जाकर जब बावली का नजारा देखा गया तो यहां जाली नहीं लगी है और शाम ढलते ही शराबियों और असामाजिक तत्व जमा हो जाते हैं,जगह-जगह बावली के अंदर शराब की बोतलें,पाऊच और गिलास डले थे।
कहां कौन सी बावली
गढ़ा क्षेत्र में बाजनामठ चौक के सामने वेश्या की बावली है,गढ़ा बाजार के पास पुरवा में बावली है। रानीताल उजारपुरवा, घमापुर व्यौहार बाग रामकृष्ण आश्रम के सामने स्थित बावली,ग्वारीघाट रोड पर स्थित बावली,बड़ी खेरमाई मंदिर के पास स्थित बावली सहित कई जगहों पर ये देखी जा सकती हैं।
15 से 16वीं शताब्दी में हुआ था निर्माण
जानकारी के अनुसार शहर में उस वक्त गोंड़कालीन राज था। गोंड़ राजाओं ने शहर को जल समृद्धि युक्त बनाया था। किसी समय में शहर में हजारों की संख्या में कुएं थे जो अब मात्र 800 बचे हैं। बावलियों का निर्माण 15 व 16 वीं शताब्दी के बीच बताया जाता है। बावलियों की संख्या पूर्व में और अधिक थी मगर इन्हें भू- माफिया निगल चुका है। इसी तरह तालाबों को भी पूर कर कॉलोनियां बना दी गई हैं।