दुनिया में 15 करोड़ बच्चे बौनेपन से पीड़ित, इनमें आधे भारत में

यूनिसेफ की रिपोर्ट के बाद आईसीएमआर करेगा बाल पोषण में बदलाव

दुनिया में 15 करोड़ बच्चे बौनेपन से पीड़ित, इनमें आधे भारत में

नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के संगठन यूनिसेफ की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में 2022 में बौनेपन की दर 31.7 फीसदी पाई गई, जो एक दशक पहले 2012 में 41.6 फीसदी थी। 2022 में दुनियाभर में पांच साल से कम उम्र के लगभग 14.81 करोड़ बच्चे बौनेपन से प्रभावित मिले। इनमें करीब 52 फीसदी बच्चे भारत में रहते हैं। इस रिपोर्ट के चलते केंद्र सरकार ने बाल पोषण में बदलाव के लिए नए सिरे से वैज्ञानिक तथ्यों के साथ नीति बनाने का फैसला लिया है। इसके लिए जल्द ही वैज्ञानिकों की एक टीम बनेगी, जो तीन चरणों में अध्ययन करेगी। इस टीम में प्रत्येक राज्य का एक सदस्य होगा, ताकि भौगोलिक चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित रह सके। सरकार ने छह से 36 माह की उम्र के शिशुओं को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य अनुसंधान योजना के तहत वैज्ञानिकों को जिम्मेदारी सौंपी है। इस प्रोजेक्ट का मुख्य लक्ष्य शिशुओं में बौनापन, कुपोषण और कमजोरी जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करना है। केंद्र से अनुमति मिलने के बाद भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एक पत्र जारी कर देशभर के शोधकर्ताओं से इस अध्ययन में जुड़ने की अपील की है।

देश में 5 साल के 1.36 करोड़ बच्चे गंभीर बीमार

यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व बैंक समूह की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार 2020 में 18.7 प्रतिशत भारतीय बच्चे पोषक तत्वों की कमी के कारण कमजोरी से प्रभावित थे। दुनिया भर में कमजोर बच्चों में से आधे भारत में रहते हैं। 2022 में वैश्विक स्तर पर पांच साल से कम उम्र के अनुमानित 4.5 करोड़ बच्चे (6.8 प्रतिशत ) कमजोरी से प्रभावित थे, जिनमें से 1.36 करोड़ बच्चे गंभीर रूप से पीड़ित थे। रिपोर्ट पर स्वास्थ्य एजेंसियों ने चिंता जताई है।

टेकहोम राशन प्रभावी ढंग से लागू होना चाहिए

केंद्र सरकार बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं में पोषण की कमी दूर के लिए टेक होम राशन प्रदान करती है, जिसे आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन आईसीएमआर का मानना है कि जमीनी स्तर पर खराब पूरकता की वजह से योजना का असर कम दिखाई दे रहा है। आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कहा है कि केंद्र सरकार के इस राष्ट्रीय कार्यक्रम पर दोबारा गौर करने और नई नीति के साथ-साथ गांव-गांव तक पहुंचने की जरूरत है। इस नीति पर निगरानी के लिए भी सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे, तभी नीति कारगर होगी।

6 से 24 माह की उम्र वृद्धि और विकास के लिए बेहतर

डॉक्टरों के अनुसार, छह से 24 माह की उम्र किसी भी शिशु के लिए वृद्धि और विकास के लिए सबसे बेहतर होती है। यह एक ऐसा पड़ाव होता है, जो बच्चे के भविष्य की शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ावा देता है। हालांकि देश में बौनापन और अल्पपोषण का जोखिम भी काफी है, जिसकी वजह से सालाना लाखों मासूम बच्चे चपेट में आ रहे हैं। अगर भौगोलिक स्थिति के आधार पर देखें तो अधिकांश मामलों में शिशु के परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होना है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में खराब भोजन प्रथाएं, देरी से पूरक आहार देना भी एक कारण है।