12 बाल कलाकारों ने वर्कशॉप में सीखा अभिनय और फिर दी मंचीय प्रस्तुति
एक अशोक ही नहीं हर व्यक्ति दो स्तर पर जीवन जीता है। एक स्तर है अंतरंग, सहचरी और संतान की ऊष्मा और पारस्परिक विश्वास जीवन को अर्थ देते हैं। वहीं दूसरा, स्तर बहिरंग, हारे हुए लोगों से जयजयकार सुनने की ललक और जो अंतत: निरर्थक सिद्ध होती है। अशोक की जीवन यात्रा को बखूबी मंच पर जीवंत किया रंग त्रिवेणी समिति के युवा कलाकारों ने। अवसर था, गांधी भवन में बैले नाटक ‘अशोक का पश्चाताप’ के मंचन का। इस नाटक का निर्देशन वैशाली गुप्ता ने किया। इस प्रस्तुति में 12 कलाकारों ने संवादों का उपयोग के साथ ही आंगिक अभिनय को महत्व दिया गया।
अमिता, अशोक को युद्ध के लिए ललकारती है
नाटक में दिखाया कि कलिंग और अशोक में युद्ध हुआ, जिसमें कलिंग और उसकी सेना को युद्ध में वीरगति प्राप्त हुई, लेकिन अशोक कलिंग के किले को भेद नहीं पाया और न ही महल का कोई द्वार खुल पाया। इस दौरान युद्ध भूमि लाशों से पटी पड़ी थी तब कलिंग राजा की पुत्री अमिता युद्ध भूमि के रण में अशोक को युद्ध के लिए ललकारती है, वह कहती है, आओ तुम मुझसे युद्ध करो। मैं अपने पिता और प्रजा की तरफ से युद्ध के लिए तैयार हूं, मुझे भी पराजित करो। ऐसे में अशोक को कुछ समझ नहीं आता, वह द्वन्द में फंसा हुआ है, कि स्त्री से युद्ध करूं या न करूं। तब अशोक विनम्र भाव से अमिता से कहता है, कि मैं स्त्रियों पर हाथ नहीं उठाता। वहीं अमिता कहती है तब यह नरसंहार क्यों। तभी बुद्ध के प्रार्थना के स्वर गूंजते हैं,‘बुद्धम शरणम गच्छामि’ और अशोक का हृदय परिवर्तन होता है। अशोक शांति और मानव कल्याण के सत्य के लिय सत्य-अहिंसा मार्ग पर चलने लगते हैं।