देश में 10 साल में 1,062 बाघों की मौत , इनमें से सबसे ज्यादा 270 मौतें मप्र में
भोपाल। टाइगर स्टेट मप्र में जिस तेजी से बाघों की संख्या बढ़ रही है, उसी तेजी से उनकी मौत के मामले भी सामने आ रहे हैं। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में मप्र में 42 बाघों की मौत हुई, 2022 में 34 बाघों की मौत हुई। बीते साल आठ अधिक बाघों की मौत हुई। इसमें से सर्वाधिक बाघ शिकारियों के शिकार हुए। मप्र वन विभाग के अवैध शिकार प्रकरण (डी-1) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में जनवरी से नवंबर के 11 महीने में शिकारियों ने 14 बाघों को मौत के घाट उतार दिया। वहीं बीते पांच साल में 89 बाघों की मौत हुई, इसमें से 19 को करंट लगाकर मारा गया। मप्र में मौजूद 785 बाघों में नए साल में पांच की मौत हो चुकी है। देशभर में 10 साल के आंकड़ों पर गौर करें तो कुल 1,062 बाघों की मौत हुई। इनमें सर्वाधिक 270 बाघों की मौत मप्र में हुर्इं। विशेषज्ञों के अनुसार, इसका सबसे बड़ा कारण जंगलों के आसपास मानव दायरा बढ़ना और टाइगर्स के प्राकृतिक रहवास इलाकों का कम होना है।
एक बाघ के लिए औसतन 40 वर्ग किमी का दायरा हो
वन्यप्राणी विशेषज्ञ बताते हैं कि टाइगर का इलाका, भोजन-पानी व रहवास पर आधारित होता है। साइबेरिया में एक हजार वर्ग किलोमीटर में एक टाइगर है, जबकि मप्र में एक टाइगर का इलाका 20 से 25 किमी तक है। वर्तमान बाघों की संख्या को देखते हुए कम से कम 50 वर्ग किमी का प्राकृतिक रहवास होना चाहिए। प्रदेश में बाघों के लिए कुल 16 हजार वर्ग किमी का संरक्षित क्षेत्र है। इस क्षेत्र में मौजूद कुल बाघों में 65% टाइगर रिजर्व और अभयारण्य में हैं और 35 फीसदी संरक्षित क्षेत्र से बाहर हैं। चार टाइगर रिजर्व में हैं क्षमता से अधिक बाघ मप्र के चार टाइगर रिजर्व-पेंच, कान्हा, बांधवगढ़ और पन्ना में क्षमता से अधिक बाघ हो गए हैं। हालांकि सतपुड़ा, संजय डुबरी, नौरादेही और रातापानी टाइगर रिजर्व में अधिकतम 250 बाघों के रहवास की और क्षमता है। सतना, बालाघाट, उमरिया, सीधी जिलों में भी बाघों की टेरटरी बढ़ाई जा सकती है।
स्थानीय नेताओं के विरोध से शिफ्ट नहीं हो पा रह
रातापानी को नेशनल टाइगर रिजर्व और बालाघाट में सोनवाने अभयारण्य बनाने का प्रस्ताव है। जनप्रतिनिधियों ने सोनवाने अभयारण्य के प्रस्ताव पर एक राय दी थी, लेकिन स्थानीय विधायक गौरीशंकर बिसेन ने धरने की धमकी दी थी, जिससे प्रस्ताव अटक गया। रातापानी पर भी जनप्रतिनधियों की सहमति अटकी हुई है।
प्रदेश के बाघों को बचाने के लिए सबसे पहले प्रयास हों कि जहां क्षमता से अधिक बाघ हैं, उन्हें संभावित क्षेत्रों में विस्थापित किया जाना चाहिए। - जेएस चौहान, पूर्व पीसीसीएफ वन्यप्राणी
मप्र में बाघों की संख्या क्षमता से अधिक होने पर वह शहरी क्षेत्रों में आ रहे हैं। ग्रामीण फसलें बचाने के लिए करंट लगाते हैं। आपसी लड़ाई में भी बाघों की मौतें होती हैं। प्लान है कि माधव पार्क में दो बाघ शिμट किए जाएंगे। इसके साथ ही स्टेट के बाहर भी विस्थापन का प्लान है। - असीम श्रीवास्तव, पीसीसीएफ, वन्यप्राणी
बाघों की मौत के मामले में मप्र 12 साल से देश में नंबर वन पर है। स्पेशल टाइगर प्रोटोक्शन फोर्स और स्टेट का वाइल्ड लाइफ क्राइम ब्यूरो न होना एक कारण है। दूसरा शिकारियों को सजा का प्रतिशत दर बहुत ही कम है। - अजय दुबे, वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट,भोपाल