मध्यप्रदेश में पांच साल में 1.36 करोड़ लोग गरीबी से बाहर, लेकिन ले रहे हैं मुफ्त राशन

नीति आयोग की रिपोर्ट : मप्र की 37 प्रतिशत आबादी आज भी गरीब, जो देश में चौथे स्थान पर

मध्यप्रदेश में पांच साल में 1.36 करोड़ लोग गरीबी से बाहर, लेकिन ले रहे हैं मुफ्त राशन

भोपाल। नीति आयोग के राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2023 के अनुसार पिछले पांच साल में मप्र में 1.36 करोड़ लोग गरीबी से मुक्त हो गए। आयोग ने पहली बार गरीबी सूचकांक (एमपीआई) जारी किया है। 17 जुलाई को जारी रिपोर्ट में जनगणना 2011 को आधार माना है। इसके अनुसार, मप्र की आबादी 7.26 करोड़ है, इसमें 1.36 करोड़ लोगों को गरीबी से मुक्त बताया गया है। रिपोर्ट में गरीबी दूर करने के लिए 12 प्रमुख संकेतक मापदंडों को आधार बनाया गया है। ये आधार पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के तहत उपस्थिति, रसोई गैस, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, परिसंपत्ति और बैंक खातों का होना है। मप्र में गरीबी दूर करने के लिए कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं।

मप्र देश के 3 अग्रणी राज्यों में, जहां गरीबी तेजी से घटी

रिपोर्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश, उप्र और बिहार समेत देश के उन राज्यों में शामिल हो गया है, जहां गरीबों के अनुपात में सबसे तेजी से कमी आई है। यह रिपोर्ट एनएफएचएस-5 (2019-21) के आधार पर तैयार की गई है। इसमें बीते पांच वर्ष में मप्र में गरीबी 15.94 प्रतिशत कम हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में 36.65 प्रतिशत लोग अभी भी गरीब हैं और मध्यप्रदेश देश का चौथा सबसे बड़ा गरीब राज्य है।

पीपुल्स की पड़ताल में हकीकत कुछ और

1 गरीबी घटी, लेकिन मुμत राशन लेने वाले बढ़े : आयोग की रिपोर्ट में भले ही गरीबी कम होने की बात कही गई है, लेकिन प्रदेश में मुμत खाद्यान्न लेने वालों की संख्या बढ़ गई है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के अनुसार, 2020 में सूची से अपात्रों के नाम हटाने के लिए अभियान चलाया गया था। तब एक करोड़ लोग अपात्र मिले थे, जिन्हें सूची से हटा दिया गया था। वहीं उस समय करीब 90 लाख पात्र लोगों के नाम जोड़े गए थे। इस तरह 2020 में करीब 5 करोड़ लोग राशन का लाभ ले रहे थे। जबकि, वर्तमान में इनकी संख्या बढ़कर 5.30 करोड़ हो गई है। यानि इतने लोगों को मुμत में राशन उपलब्ध कराया जा रहा है। इनमें 52 प्रतिशत बीपीएल कार्ड धारक हैं।

2 उज्ज्वला में सिलेंडर तो मिला, लेकिन भरा नहीं पा रहे : आयोग ने गरीबी कम होने वाले कारकों में रसोई गैस सिलेंडर को भी आधार बनाया है। लेकिन, हकीकत इसके उलट है। उज्ज्वला के तहत रसोई गैस लेने वाले परिवारों में से अधिकतर इसे भराने की स्थिति में नहीं हैं। बानगी के तौर पर बालाघाट जिले के तहसील लांजी के ग्राम काली माटी को लिया जा सकता है। गांव के अरुण पोंगारे ने बताया कि यहां कुल 1,772 वोटर हैं। गांव में कुल 240 घर हैं। सभी परिवारों को उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर मिले हुए हैं। लेकिन, 170 से अधिक लोग आर्थिक संकट के चलते गैस सिलेंडर नहीं भरवा पा रहे हैं। इसके चलते उन्हें चूल्हे पर खाना पकाना पड़ रहा है।

3 हालांकि, शिशु मृत्यु दर घटी : प्रदेश में पिछले पांच सालों में शिशु दर (आईएमआर) घटी है। एनएफएचएस के अनुसार, 2015-16 में मप्र में प्रति एक हजार जीवित बच्चों में से 52 शिशुओं की मौत हो जाती थी। यह घटकर 2019-21 में 41 रह गई है। हालांकि यह अब भी देश में सबसे ज्यादा है। वहीं पांच साल से कम वाले बच्चों में यह दर प्रति हजार जीवित बच्चों में 64 से 49 रह गई है।

खाद्य विभाग का कार्य सूची में दर्ज व्यक्तियों को खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। गरीबी रेखा में नाम जोड़ने व हटाने की कार्रवाई राजस्व, ग्रामीण एवं नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा की जाती है। - दीपक सक्सेना संचालक, खाद्य, नागरिक उपभोक्ता संरक्षण

नाम जोड़ने, घटाने और मॉनीटरिंग का काम खाद्य विभाग के माध्यम से होता है। इसमें सक्षम प्राधिकारी शहर में एसडीएम और ग्रामीण क्षेत्रों में तहसीलदार होते हैं। - निकुंज श्रीवास्तव प्रमुख सचिव, राजस्व