मेरे पास मां है..

मेरे पास मां है..

हर साल मई के दूसरे रविवार को दुनिया भर में मदर्स डे (Mother’s Day) मनाया जाता है। इस बार मदर्स डे 10 मई को है। मां के प्रति अपनी अनुभूति को शब्दों में ढालना आसान नहीं होता, लेकिन फिर भी मां के लिए जब कुछ कहने की बात आती है तो सख्त जुबान भी नरम पड़कर बात करती हैं। मां के साथ अपने रिश्तों पर जिस तरह से एक बच्चा अपने मन को जाहिर करता है एक उम्रदराज भी कुछ वैसे ही यादों की जुगाली करते हुए मां के साथ अपने बचपन को बयां करता है। कुछ प्रमुख शहरवासियों से आई एम भोपाल ने बात की जो मां से अपनी बॉन्डिंग के चलते उन्हें अलग ढंग से याद करते हैं।

आखिरी 48 महीनों में उनके साथ 50 ओकेजन किए सेलिब्रेट

जिंदगी में मेरी माता स्व. देवेंद्रकुमारी सिंह देव से जैसी अच्छी बॉन्डिंग वैसी किसी से नहीं हो सकती। उनके साथ गुजरा आखिरी समय मुझे हमेशा याद रहेगा। मेरा जन्म दिल्ली में हुआ, क्योंकि उनके पापा दिल्ली में पोस्टेड थे और फिर उनके साथ भोपाल आ गए और यहीं पूरी लाइफ उनके साथ गुजरी। मेरी खुशकिस्मती है कि मैंने उन्हें हाउसवाइफ भी देखा, मिनिस्टर के तौर पर भी देखा और पॉलिटिक्स को छोड़ते हुए भी देखा। उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। एक अच्छी बात यह है की हम सब भाई-बहनों में मैं सबसे छोटा हूं। सभी रिलेटिव हरियाणा और नेपाल में रहते थे, लेकिन सब अपने काम में बिजी थे। सभी फैमिली मेंबर्स ने डिसाइड किया कि दिल्ली को बेस बनाएंगे और उनके साथ आखिरी के 48 महीने में करीब 50 ओकेजंस ऐसे आए जब उनके साथ सेलिब्रेट किया। मां के साथ मेरी उनके आखिरी समय की बॉन्डिंग सबसे यादगार रही है। वह मोमेंट मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगा।

लॉकडाउन में मम्मी से वीडियो कॉल पर अलग- अलग डिशेस बनाना सीख रही हूं

मैं लॉकडाउन की वजह से अभी मुंबई में हूं। अप्रैल में पापा का बर्थडे था तो भोपाल आने वाली थी, लेकिन आ न सकी। कोशिश मेरी हर साल होती है कि मम्मी शशि शर्मा के साथ ही मदर्स डे मनाऊ। इस साल लॉकडाउन की बदौलत पॉसिबल नहीं हो पा रहा है। मम्मी को इस समय सबसे ज्यादा मिस कर रही हूं, क्योंकि सारा काम खुद को ही करना पड़ रहा है। मम्मी के साथ जब रहती हूं तो वो बहुत लाड़- प्यार से रखती है। लॉकडाउन में मम्मी मुझे मम्मी के हाथ का खाना बहुत याद आता है और उनसे हर दूसरे दिन वीडियो कॉल पर पूछती रहती हूं। जैसे मैंने केरी खरीद कर लाई हूं और उनसे आम पना बनाना सिखाया। जो भी डिशेस घर में बनाती थी उन सभी को अभी वीडियो कॉल के जरिए सीख रही हूं।

मां का सपना था, मैंने पूरा करने का प्रयास किया

आयाम दिव्यांग बच्चों का स्कूल हैं। यह मप्र का पहला इंक्लूसिव एजुकेशन स्कूल है, जिसमें बच्चों से लेकर 60 साल तक के दिव्यांग हैं। मेरी मां माधुरी शुक्ला के साथ मेरा बचपन बहुत लंबा नहीं रहा क्योंकि जब मैं सातवीं कक्षा में थी तभी उनका निधन हो गया, लेकिन मैंने उन्हें शिक्षा से जुड़े कार्यों में Þबढ़-चढ कर हिस्सा लेते देखा। वे बच्चों को संस्कृत और हिंदी पढ़ाया करती थीं। उनका सपना था कि वे एक स्कूल की शुरुआत करें। उनका यह सपना पूरा होता इससे पहले वो दुनिया से रूखसत हो गईं,लेकिन मेरे मन में कहीं न कहीं स्कूल शुरू करने का विचार था। मैंने एमबीए पूरा करने के बाद साल 2008 में स्कूल शुरू किया। यही वजह रही कि मैंने मां के बताए रास्ते को अपना कर्मक्षेत्र चुना।

मां ने चैलेंजिंग जॉब में भी मेरी छोटी-छोटी बातें याद रखीं...

मेरी मां एडीजी अरुणा मोहन राव फील्ड पर तो सख्त हैं ही, पर वे सख्त मां भी हैं, लेकिन जब मुझे दोस्त के रूप में उनकी जरूरत महसूस होती है तब वे मेरी सबसे अच्छी दोस्त के रूप में सामने आती हैं। कई बार जब मां का मूड अच्छा नहीं होता तब मैं उनके आगे-पीछे घूमता रहता है और उनसे बातें करता रहता हूं, ताकि उनको मेरी किसी बात पर हंसी आ जाए और उनका मूड अच्छा हो जाए। मेरी कोशिश होती है कि जब कभी वो मेरे सामने हो मैं कभी किसी बात पर उनको उदास न होने दूं , क्योंकि उन्होंने भी बचपन से लेकर आज तक इतनी चैलेंजिंग जॉब के बीच मेरी और फैमिली की छोटी-छोटी बातें याद रखीं। जिस तरह उन्होंने कॅरियर और लाइफ को बैलेंस किया, मैं भी उनकी तरह ही लाइफ में बैलेंस बनाने की सीख ले रहा हूं। मेरी मां के लिए इतना कहना चाहूंगा कि वो हैं तो हम सभी हैं।